सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजी दैनिक के हलफनामे को खारिज करने वाले आदेश पर लगाई रोक

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ द्वारा दायर उस हलफनामे को खारिज कर दिया गया था जिसमें एक मामले की सुनवाई पर ‘गलत रिपोर्टिंग’ के लिए माफी मांगी गई थी। उच्च न्यायालय ने दो सितंबर को ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ और दो अन्य अखबारों को अपने प्रकाशनों के पहले पन्ने पर मोटे अक्षरों में सार्वजनिक माफी मांगने के लिए तीन दिन का समय और देते हुए कहा था कि माफी में जनता को 13 अगस्त को की गई ‘गलत रिपोर्टिंग’ के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित किया जाए।

अदालत ने कहा था, ‘तीन अखबारों-‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘दिव्य भास्कर’ के संपादकों द्वारा आज अदालत में पेश किए गए हलफनामे में याचिकाओं के इस समूह में सुनवाई पर अखबार संस्करण में 13 अगस्त, 2024 को प्रकाशित रिपोर्ट के बारे में अखबारों में मांगी गई सार्वजनिक माफी अदालत की संतुष्टि के अनुरूप नहीं है। उनके सभी हलफनामे तदनुसार खारिज किए जा रहे हैं।”

उच्च न्यायालय के दो सितंबर के आदेश को चुनौती देने वाली अंग्रेजी दैनिक ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ प्रकाशित करने वाली बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर याचिका बुधवार को न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की शीर्ष अदालत की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई। पीठ ने कहा, ”संबंधित आदेश के साथ-साथ अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाई जाए। हालांकि, हम स्पष्ट करते हैं कि रिट याचिका की कार्यवाही कानून के अनुसार आगे बढ़ेगी। उच्च न्यायालय ने 13 अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि 12 अगस्त को मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कुछ टिप्पणियाँ की थीं जो ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में एक समाचार के रूप में शीर्षक ‘स्टेट कैन रेगुलेट माइनोरिटी इंस्टिट्यूशंस बाय एक्सीलेंस इन एजुकेशन: हाईकोर्ट’ और उप-शीर्षक ‘हैव टू गिव राइट्स इन नेशनल इंटरेस्ट’ से छपी थीं।

अदालत ने कहा था, ”समाचार सामग्री को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत ने अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को विनियमित करने के लिए सरकार की शक्ति के प्रयोग के सामने अपनी पसंद के शिक्षकों को नियुक्त करने के अल्पसंख्यक संस्थान के अधिकारों के मामले में एक राय बनाई है। इसने यह भी रेखांकित किया था कि ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘दिव्य भास्कर’ में भी इसी तरह की खबरें प्रकाशित की गई थीं। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘अदालत की टिप्पणियों की रिपोर्टिंग के सनसनीखेज तरीके से आम लोगों को यह आभास हुआ कि अदालत ने पहले ही एक राय बना ली है, जो अदालती कार्यवाही की गलत व्याख्या के अलावा और कुछ नहीं है।’ इसने 13 अगस्त को तीनों समाचारपत्रों के संपादकों को नोटिस जारी कर इस बारे में जवाब मांगा था कि ‘क्या उन्होंने समाचार सामग्री बनाने से पहले अदालत के किसी अधिकारी से प्रामाणीकरण लिया था, वह भी सनसनीखेज तरीके से, या समाचार बनाने के लिए यूट्यूब लाइव-स्ट्रीमिंग वीडियो का उपयोग किया गया।