दिल्ली में क्या साफ हो सकेगा कूड़े का पहाड़?

0
100

अभिषेक उपाध्याय। भारत की राजधानी दिल्ली आज देश के विकास का प्रतीक होने के साथ-साथ उसकी पर्यावरणीय चुनौतियों का आईना भी बन गई है। ग़ाज़ीपुर, भलस्वा और ओखला के कूड़ा-डंपिंग स्थलों पर खड़े कचरे के पहाड़ अब सिर्फ शहर की बदबूदार हकीकत नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलता के प्रतीक बन चुके हैं। सवाल उठता है – क्या दिल्ली इन कूड़े के पहाड़ों से कभी मुक्त हो सकेगी?

दिल्ली हर दिन लगभग 11,000 टन ठोस कचरा उत्पन्न करती है, जिसमें से केवल आधा ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाया जा पाता है। बाकी कचरा लैंडफिल साइटों पर जमा होता चला जाता है। ग़ाज़ीपुर का पहाड़ अब 70 मीटर से भी ऊँचा हो चुका है—क़रीब-क़रीब कुतुब मीनार जितना! हर साल इस पर आग लगने और जहरीले धुएँ से आसपास के इलाकों में सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

दिल्ली सरकार ने कई बार वादे किए हैं कि ये लैंडफिल साइटें कुछ सालों में खत्म कर दी जाएंगी। कचरा प्रोसेसिंग प्लांट लगाने, वेस्ट-टू-एनर्जी तकनीक अपनाने और घर-घर से कचरे के पृथक्करण की योजनाएं बनी हैं, लेकिन इनका असर बहुत सीमित रहा है। समस्या सिर्फ तकनीक या संसाधन की नहीं, बल्कि जन-जागरूकता और जवाबदेही की भी है।

अगर दिल्ली को वाकई साफ बनाना है तो सरकार, नगर निगम और जनता — तीनों को मिलकर काम करना होगा। घरों से कचरे का अलग-अलग निस्तारण, रिसायक्लिंग को बढ़ावा और आधुनिक कचरा प्रबंधन तकनीकों का तेजी से उपयोग ही इस संकट का समाधान है। अन्यथा, ये “कूड़े के पहाड़” दिल्ली की पहचान बनते रहेंगे और आने वाली पीढ़ियां भी इसी प्रदूषित विरासत के बीच सांस लेंगी।