अमेरिकी टैरिफ से लड़ने में सक्षम है भारत

0
47

अभिषेक उपाध्याय। अमेरिका की हालिया टैरिफ पाबंदियों ने भारत के निर्यात-क्षेत्र पर झटका दिया है, पर यह कहना कि भारत इससे टूट जाएगा — अतिशयोक्ति होगी। भारत के पास तरह-तरह के जवाबी विकल्प और दीर्घकालिक रणनीतियाँ मौजूद हैं जो उसे इस चुनौती से निपटने में मदद कर सकती हैं। पहली बात यह कि दोनों देशों के बीच वार्ता फिर से शुरू हो चुकी है और व्यापार समझौते की बातचीत चल रही है — कूटनीतिक टोन और बातचीत से पैक के कई हिस्से सुलझ सकते हैं। 

दूसरी बात यह कि भारतीय अर्थव्यवस्था विविध है

वस्त्र, चमड़ा और कृषि जैसे संवेदनशील सेक्टरों पर असर हुआ है, पर सेवा निर्यात और आईटी, फार्मा तथा ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में India की पकड़ मजबूत है। साथ ही सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों के समर्थन के लिए नीतिगत राहत और बाजार विविधीकरण की रूपरेखा तेज करने का विकल्प रखा है।  

भारत सीधे बहुपक्षीय मंचों और WTO के नियमों का भी सहारा ले सकता है, तथा व्यापार समझौतों के माध्यम से अन्य बाजारों में पहुंच बढ़ा सकता है। अमेरिका-चीन तनाव व अमेरिकी टैरिफों से चीन से सस्ते वस्तुओं की खपत प्रभावित हुई तो भारत को अवसर मिल सकता है — पर यह अवसर रणनीति और गुणवत्ता सुधार पर निर्भर करेगा।  

राजनीतिक और कूटनीतिक संतुलन भी मायने रखता है

रक्षा व रणनीतिक साझीदारी के बावजूद व्यापारिक अस्थिरता ने यह दिखाया कि आर्थिक निर्णयों में स्वायत्तता बनाए रखना जरूरी है। India को न केवल तात्कालिक राहत—यानी उद्यमों के लिए कर/निर्यात प्रोत्साहन—देंना होगा, बल्कि औद्योगिक क्षमता, लॉजिस्टिक्स और ब्रांडिंग में सुधार कर के दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धा भी मजबूत करनी होगी।  

निष्कर्ष यह कि अमेरिकी टैरिफ चुनौती भारी है पर भारत के पास टैक्टिकल और स्ट्रैटेजिक दोनों स्तरों पर लड़ने की क्षमता मौजूद है — बातचीत, बाजार विविधीकरण, घरेलू समर्थन और अंतरराष्ट्रीय नियमों का संयोजन उसे टिके रहने और आगे बढ़ने में मदद करेगा।