प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संगीत के जादूगर भूपेन हजारिका की 99वीं जयंती पर सोमवार को उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि उनके गीतों में हमेशा करुणा, सामाजिक न्याय, एकता और गहरी आत्मीयता की गूंज रही। प्रधानमंत्री मोदी ने असम में जन्में और भारत रत्न विजेता हजारिका पर लिखा अपना एक लेख साझा किया और बताया कि यह वर्ष उनके जन्म शताब्दी समारोह की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय कलात्मक अभिव्यक्ति और जन चेतना में उनके अमूल्य योगदान पर पुनर्विचार करने का अवसर है। अपने लेख में प्रधानमंत्री ने कहा, ”भारतीय संस्कृति और संगीत से लगाव रखने वालों के लिए आज आठ सितंबर का दिन बहुत खास है। आज भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका की जन्म जयंती है।
भूपेन दा ने हमें संगीत से कहीं अधिक दिया। उनके संगीत में ऐसी भावनाएं थीं जो धुन से भी आगे जाती थीं। वह केवल एक गायक नहीं थे, वह लोगों की धड़कन थे। कई पीढ़ियां उनके गीत सुनते हुए बड़ी हुईं। उनके गीतों में हमेशा करुणा, सामाजिक न्याय, एकता और गहरी आत्मीयता की गूंज है।” उन्होंने कहा कि भूपेन दा के रूप में असम से एक ऐसी आवाज़ निकली जो किसी कालजयी नदी की तरह बहती रही। भूपेन दा सशरीर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज आज भी हमारे बीच है और वो आवाज आज भी सीमाओं और संस्कृतियों से परे है। उसमें मानवता का स्पर्श है। मोदी ने अपने लेख में कहा कि भूपेन हजारिका ने दुनिया का भ्रमण किया, समाज के हर वर्ग के लोगों से मिले लेकिन वह असम में अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहे।
असम की समृद्ध मौखिक परंपराएं, लोकधुनें और सामुदायिक कहानी कहने के तरीकों ने उनके बचपन को गढ़ा। यही अनुभव उनकी कलात्मक भाषा की नींव बने। वे असम की आदिवासी पहचान और लोगों के सरोकार को हर समय साथ लेकर चले। लेख में कहा गया कि बहुत छोटी उम्र से उनकी प्रतिभा लोगों को नजर आने लगी और केवल पांच वर्ष की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक मंच पर गाया। वहां लक्ष्मीनाथ बेझबरुआ जैसे असमिया साहित्य के अग्रदूत ने उनके कौशल को पहचाना, किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपना पहला गीत रिकॉर्ड कर लिया। उन्होंने कहा, ”भूपेन हजारिका, संगीत के साथ ही मां भारती के भी सच्चे उपासक थे, उनके पास अमेरिका में रहने का विकल्प था लेकिन वे भारत लौट आए और संगीत साधना में डूब गए।
रेडियो से लेकर रंगमंच तक, फिल्मों से लेकर एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्री तक, हर माध्यम में वे पारंगत थे। जहां भी गए, नई प्रतिभाओं को समर्थन दिया।” लेख में कहा गया कि हजारिका की रचनाएं काव्यात्मक सौंदर्य से भरी रहीं, और साथ-साथ उन्होंने सामाजिक संदेश भी दिए। गरीबों को न्याय, ग्रामीण विकास, आम नागरिक की ताकत, ऐसे अनेक विषय उन्होंने उठाए। बहुत से लोग, खासकर सामाजिक रूप से वंचित तबकों के लोग, उनके संगीत से शक्ति और आशा पाते रहे…और आज भी पा रहे हैं। लेख के अनुसार, हजारिका की जीवन यात्रा में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। उनकी रचनाओं ने भाषा और क्षेत्र की सीमाएं तोड़कर एकजुट किया। उन्होंने असमिया, बांग्ला और हिन्दी फिल्मों के लिए संगीत रचा। उनकी आवाज में जो पीड़ा थी, वो बरबस हम सभी का ध्यान खींच लेती थी। प्रधानमंत्री ने अपने लेख में कहा हजारिका राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, फिर भी जनसेवा की दुनिया से जुड़े रहे।
1967 में वह असम के नौबोइचा से निर्दलीय विधायक चुने गए, यह दिखाता है कि लोगों को उन पर कितना गहरा विश्वास था। उन्होंने राजनीति को अपना करियर नहीं बनाया, लेकिन हमेशा लोगों की सेवा में जुटे रहे। मोदी ने कहा कि देश की जनता और भारत सरकार ने उनके योगदान का सम्मान किया। उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण, दादासाहेब फाल्के अवार्ड समेत कई सम्मान मिले। प्रधानमंत्री ने अपने लेख में कहा, ”2019 में हमारे कार्यकाल के दौरान उन्हें भारत रत्न मिला। यह मेरे लिए और राजग सरकार के लिए भी सम्मान की बात थी। दुनिया भर में खासकर असम और उत्तर-पूर्व के लोगों ने इस अवसर पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि यह उन सिद्धांतों का सम्मान था, जिन्हें भूपेन दा दिल से मानते थे, वो कहते थे कि सच्चाई से निकला संगीत किसी एक दायरे में सिमट कर नहीं रहता। एक गीत लोगों के सपनों को पंख लगा सकता है और दुनिया भर के दिलों को छू सकता है।
उन्होंने कहा, ”मुझे 2011 का वह समय याद है जब भूपेन दा का निधन हुआ। मैंने टीवी पर देखा उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोग पहुंचे। हर आंख नम थी। जीवन की तरह, मृत्यु में भी उन्होंने लोगों को साथ ला दिया। इसलिए उन्हें जलुकबाड़ी की पहाड़ी पर ब्रह्मपुत्र की ओर देखते हुए अंतिम विदाई दी गई, वही नदी जो उनके संगीत, उनके प्रतीकों और उनकी स्मृतियों की जीवनरेखा रही है। अब यह देखना बहुत सुखद है कि असम सरकार भूपेन हजारिका कल्चरल ट्रस्ट के कार्यों को बढ़ावा दे रही है। यह ट्रस्ट युवा पीढ़ी को भूपेन दा की जीवन यात्रा से जोड़ने में जुटा है।” उन्होंने कहा कि भूपेन दा की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने के लिए देश के सबसे बड़े पुल को भूपेन हजारिका सेतु नाम दिया गया। 2017 में जब मुझे इस सेतु के उद्घाटन का अवसर मिला, तो मैंने महसूस किया कि असम और अरुणाचल…इन दो राज्यों को जोड़ने वाले, उनके बीच की दूरी कम करने वाले इस सेतु के लिए भूपेन दा का नाम सबसे उपयुक्त है।