ग्रेट निकोबार परियोजना राष्ट्रीय मूल्यों के साथ विश्वासघात, इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी: सोनिया

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नई दिल्ली। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने सोमवार को कहा कि ग्रेट निकोबार परियोजना एक ‘सुनियोजित दुस्साहस, न्याय का उपहास और राष्ट्रीय मूल्यों के साथ विश्वासघात’ है, जिसके खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिए। सोनिया गांधी ने अंग्रेजी दैनिक ‘द हिंदू’ के लिए लिखे एक लेख में यह भी कहा कि जब कुछ जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर हो, तो देश की सामूहिक अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती और एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र का इतने बड़े पैमाने पर विनाश नहीं होने दिया जा सकता। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यह लेख सोशल मीडिया मंचों पर साझा किया और इस परियोजना को लेकर सवाल उठाए।

राहुल गांधी ने कहा कि इस लेख के जरिये सोनिया गांधी ने इस परियोजना के माध्यम से निकोबार के लोगों तथा वहां की पारिस्थितिकी तंत्र के साथ किए जा रहे अन्याय को उजागर किया है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लेख में कहा, “पिछले 11 वर्षों में अधूरी और गलत नीतियां बनाई गई हैं। इस सुनियोजित दुस्साहस की श्रृंखला में नवीनतम है ‘ग्रेट निकोबार मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना’। 272,000 करोड़ रुपये का यह पूरी तरह से गलत खर्च द्वीप के मूल आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है, यह दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक के लिए खतरा है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।” उन्होंने कहा कि इसके बावजूद इसे असंवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है, जिससे सभी कानूनी और सुविचारित प्रक्रियाओं का मज़ाक उड़ाया जा रहा है।

सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि इस परियोजना के माध्यम से आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ” ग्रेट निकोबार द्वीप दो मूल समुदायों, निकोबारी जनजाति और शोम्पेन जनजाति (एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह) का घर है। निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव परियोजना के प्रस्तावित भू-क्षेत्र में आते हैं। 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के दौरान निकोबारी लोगों को अपने गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। ” सोनिया गांधी के अनुसार, यह परियोजना अब इस समुदाय को स्थायी रूप से विस्थापित कर देगी जिससे उनके अपने पैतृक गांवों में लौटने का सपना टूट जाएगा। उनका दावा है कि शोम्पेन समुदाय को और भी बड़े खतरे का सामना करना पड़ रहा है। सोनिया गांधी ने कहा, “शोम्पेन समुदाय को एक और भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

द्वीप की शोम्पेन नीति, जिसे केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है, विशेष रूप से अधिकारियों से यह अपेक्षा करती है कि वे ‘बड़े पैमाने पर विकास प्रस्तावों’ पर विचार करते समय इस जनजाति की भलाई और ‘अखंडता’ को प्राथमिकता दें।’ उन्होंने कहा कि इसके बजाय यह परियोजना शोम्पेन जनजातीय अभयारण्य के एक बड़े हिस्से को अधिसूचित नहीं करती, यह शोम्पेन के निवास वाले वन पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करती है और यह द्वीप पर बड़े पैमाने पर लोगों और पर्यटकों की आमद का कारण बनेगी। उन्होंने कहा, अंततः शोम्पेन खुद को अपनी पैतृक भूमि से कटा हुआ पाएंगे और अपने सामाजिक और आर्थिक अस्तित्व को बनाए रखने में असमर्थ पाएंगे। फिर भी, सरकार हठधर्मिता और हैरान करने वाली जिद पर अड़ी हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए स्थापित उचित प्रक्रिया और नियामक सुरक्षा उपायों की अवहेलना की गई है। सोनिया गांधी ने कहा, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के अनुसार किए गए सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एसआईए) में निकोबारी और शोम्पेन को इस प्रक्रिया के हितधारक के रूप में माना जाना चाहिए था और उन पर परियोजना के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना चाहिए था। इसके बजाय, इसमें उनका कोई भी उल्लेख नहीं है। कांग्रेस की शीर्ष नेता ने दावा किया कि देश के कानूनों का खुलेआम मज़ाक उड़ाया जा रहा है और देश के सबसे कमज़ोर समूहों में से एक को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। सोनिया गांधी ने कहा, जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर हो, तो हमारी सामूहिक अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती और न ही उसे चुप रहना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया, भावी पीढ़ियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के इतने बड़े पैमाने पर विनाश की अनुमति नहीं दे सकती। हमें न्याय के इस उपहास और हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के साथ इस विश्वासघात के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी।