क्लबों को ईएफआई प्रशासन में मतदान का अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि भारतीय घुड़सवारी महासंघ (ईएफआई) से संबद्ध क्लबों को महासंघ के प्रशासन में मतदान का अधिकार नहीं है, जिससे राज्य संघों का महत्व बढ़ गया है। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने चंडीगढ़ स्थित एक घुड़सवारी क्लब और उससे जुड़े पक्षों द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि ईएफआई चुनावों में क्लबों और संस्थागत सदस्यों की भागीदारी राष्ट्रीय खेल संहिता के विपरीत थी। अदालत ने 23 दिसंबर को अपने आदेश में कहा कि खेल संहिता के खंड 3.9 और 3.10 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय महासंघ के निर्वाचक मंडल में मतदान के अधिकार क्लबों या व्यक्तिगत सदस्यों के लिए नहीं बल्कि संबद्ध राज्य संघों (एसए) और केंद्र शासित प्रदेश संघों (यूटीए) के लिए आरक्षित हैं।

फैसले में कहा गया है, ”राष्ट्रीय खेल संहिता के अनुसार किसी क्लब को राष्ट्रीय खेल महासंघ के प्रशासन में भाग लेने या उसे प्रभावित करने का कोई वैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं है।” पीठ ने कहा कि अगर क्लबों को मतदान की अनुमति दी जाती है तो इससे खेल संहिता में प्रतिनिधियों की जो संरचना बताई गई है वह कमजोर पड़ जाएगी। यह फैसला ईएफआई के संचालन को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद की पृष्ठभूमि में आया है, जो अपनी चुनावी प्रक्रियाओं, सदस्यता संरचना और खेल संहिता के पालन को लेकर कई वर्षों से न्यायिक जांच के दायरे में है। ईएफआई को 1967 से घुड़सवारी खेल के लिए राष्ट्रीय महासंघ के रूप में मान्यता मिली थी। उसने अपने क्लबों, व्यक्तिगत सदस्यों और संस्थागत इकाइयों को मतदान का अधिकार दिया है।