अक्षम विधायी मसौदा कर सकता है कानूनों और लोकतंत्र को कमजोर : अमित शाह

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि अक्षम विधायी मसौदा प्रणाली कानूनों एवं लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है और यहां तक कि न्यायपालिका के कामकाज को भी प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा कि मसौदे में ‘ग्रे एरिया’ (जहां कमी मिलने की गुंजाइश हो) से व्याख्या में अतिक्रमण की आशंका रहती है। राज्य और केद्र सरकार के कर्मचारियों के वास्ते विधायी मसौदे के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए शाह ने यह भी कहा कि अगर मसौदा सुस्पष्ट और बेहतर हो तो कानून के बारे में शिक्षित करना आसान होता है तथा गलती की गुंजाइश न्यूनतम रहती है। उन्होंने कहा, कानून का मसौदा जितना सरल व स्पष्ट होगा, उसे लागू करना उतना ही आसान होगा। स्पष्ट मसौदे से न्यायिक अतिक्रमण की संभावना भी दूर रहती है। मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में जितनी अस्पष्टता होगी, न्यायिक व्याख्याओं के लिए उतनी ही अधिक गुंजाइश बनेगी।

शाह ने कहा कि भारत न सिर्फ सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि लोकतंत्र का विचार भी भारत से ही उपजा था। उन्होंने कहा कि महाभारत के दिनों से मौर्य युग तक और फिर गुप्त साम्राज्य तक, लोकतंत्र सरकारी प्रणालियों के विकल्पों में से एक था। गृह मंत्री ने कहा, भारतीय संविधान लोकतंत्र के आधुनिक सिद्धांतों और प्रथाओं द्वारा निर्देशित रहते हुए हमारी लोकतांत्रिक विरासत से बहुत अधिक प्रेरित है। उन्होंने कहा कि विधायिका कानूनी विशेषज्ञों की संस्था नहीं है, बल्कि जनप्रतिनिधियों की संस्था है जो लोगों की समस्याओं और आकांक्षाओं से अवगत हैं। गृह मंत्री ने कहा कि वे लोगों के अनुसार कानून बनाते हैं लेकिन इन कानूनों को संविधान की भावना के अनुसार ढालना एक बड़ी जिम्मेदारी है जो विधायी विभाग पर है।

शाह ने कहा कि कमियों की गुंजाइश नहीं छोड़ने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए…उदाहरण के लिए, संविधान का मसौदा तैयार करते समय, विषय सूची में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। उन्होंने पूछा, अगर यह नहीं लिखा होता तो क्या होता? शाह ने कहा, इसलिए मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि किसी भी कानून का मसौदा तैयार करते समय विधायिका की आकांक्षा को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकारों का सुचारू कामकाज विधायी मसौदों पर भी निर्भर करता है। मंत्री ने कहा कि कानून का मसौदा तैयार करते समय कई कारकों- संविधान, लोगों के रीति-रिवाज, संस्कृति, ऐतिहासिक विरासत, शासन व्यवस्था की संरचना, समाज की प्रकृति, देश के सामाजिक-आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय संधियों- का ध्यान रखा जाना चाहिए।

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