पर्यावरण और आदिवासियों के अधिकारों पर सरकार की कथनी और करनी में अंतर: कांग्रेस

0
60

कांग्रेस ने ‘वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023’ को संसद की मंजूरी मिलने के बाद बुधवार को आरोप लगाया कि पर्यावरण, वन एवं आदिवासियों के अधिकारों के संबंध में मोदी सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। संसद ने बुधवार को ‘वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023’ को मंजूरी दे दी जिसका मकसद वनों के संरक्षण के साथ ही विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना और लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाना है। राज्यसभा ने बुधवार को विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 पहली बार 29 मार्च, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में व्यापक बदलाव के लिए कई संशोधन पेश किए गए थे। इस विधेयक की यात्रा अपने आप में एक अध्ययन का विषय है कि कैसे विधायी प्रक्रिया को पूरी तरह से नष्ट किया जाता है। उन्होंने कहा, विधेयक को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए था, जिसका मैं अध्यक्ष हूं। मैंने इस पर गंभीर आपत्ति जताई थी, और एक बार नहीं बल्कि दो बार, उसे रिकॉर्ड पर भी रखा था। लेकिन विधेयक को स्थायी समिति को भेजने के बजाए संसद की एक संयुक्त समिति को भेजा गया, जिसके अध्यक्ष सत्ताधारी दल के सांसद थे। रमेश ने दावा किया, संयुक्त समिति ने 20 जुलाई, 2023 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह अजीब बात थी और शायद ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि समिति ने जो रिपोर्ट दी, उसमें सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक में किसी भी तरह के बदलाव का कोई सुझाव नहीं था। छह सांसदों ने विस्तृत रूप से असहमति व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी।

उन्होंने कहा कि कानून का नाम ही बदला जा रहा है और पहली बार संसद द्वारा पारित किसी कानून का संक्षिप्त शीर्षक बिना किसी आधिकारिक अंग्रेज़ी समानार्थी के, पूरी तरह हिंदी में होगा जो गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के साथ अन्याय है। रमेश ने आरोप लगाया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बार-बार वन अधिकार अधिनियम, 2006 की अनदेखी की है, जो आदिवासियों और पारंपरिक रूप से वन में रह रहे लोगों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था। उन्होंने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा जरूरी है, लेकिन इसके नाम पर जंगलों को साफ़ करने और हमारी सीमाओं के पास जैव विविधता के नजरिए से महत्वपूर्ण और भौगोलिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को बदलने के लिए पूरी तरह से क्लीन चिट प्रदान की जा रही है। उन्होंने कहा, संशोधनों का जो निष्कर्ष है और संसद में इन्हें जिस तरह से लाया और पारित करवाया गया, दोनों ही मोदी सरकार की मानसिकता को दर्शाते हैं। विधेयक यह भी दिखाता है कि पर्यावरण, वनों एवं आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य समुदायों के अधिकारों को लेकर इस सरकार की वैश्विक स्तर पर बातों और घरेलू स्तर पर किए जाने वाले कार्यों में कितना अंतर है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here