संविधान, न्यायिक मंच का उपयोग करने की न्यायाधीशों की क्षमता स्थिर समाज की कुंजी: प्रधान न्यायाधीश

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नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ का कहना है कि संवाद और विचार-विमर्श के लिए संविधान एवं न्यायिक मंचों का उपयोग करने की न्यायाधीशों की क्षमता एक स्थिर समाज की कुंजी है क्योंकि दुनिया भर के कई समाजों में, कानून के शासन ने हिंसा के शासन का स्थान लिया है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर, वाशिंगटन और सोसाइटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एसडीआर), नयी दिल्ली द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम के दौरान भारतीय न्यायपालिका से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की गई। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर उच्चतम न्यायालय में बहुपक्षीयता के मुद्दे पर भी बात की। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”दुनिया भर के कई समाजों में, आप पाएंगे कि कानून के शासन ने हिंसा के शासन का स्थान ले लिया है… इस संदर्भ में एक स्थिर समाज की कुंजी न्यायाधीशों की संविधान और अपने स्वयं के मंच का उपयोग करने की क्षमता है, संवाद के लिए एक मंच के रूप में, तर्क के लिए एक मंच के रूप में, विचार-विमर्श के लिए एक मंच के रूप में।

उन्होंने कहा, और बहुत सारे मामलों में हम निर्णय लेते हैं, जिनमें वह मामला (समलैंगिक विवाह) भी शामिल है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। मेरा मानना है कि परिणाम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन प्रक्रिया भी परिणाम जितनी ही महत्वपूर्ण है। सीजेआई ने राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई के सिद्धांत पर भी चर्चा की और कहा कि इसका उद्देश्य व्यापक समानता हासिल करना है और यह समानता के अधिकार के खिलाफ नहीं है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, अब भारत के साथ-साथ अमेरिका में सकारात्मक कार्रवाई के खिलाफ तर्क यह है कि सकारात्मक कार्रवाई योग्यता को कम करती है और तर्क यह भी है कि शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण होने से, आप ऐसे लोगों को चुन रहे हैं जो कम मेधावी हैं, लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमने काफी काम किया है।

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