नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की उस याचिका निर्वाचन आयोग को निर्देश देने से मना कर दिया, जिसमें आयोग को मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत के आंकड़े अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ नामक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद 2019 में दायर एनजीओ की रिट याचिका के साथ इसकी सुनवाई की जाएगी। इसमें कहा गया है कि हर कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव चाहता है लेकिन ”हमें इस बात की भी चिंता है कि कुछ शरारती लोग फायदा उठाने की फिराक में हो सकते हैं।
अदालत ने कहा, ”अंतरिम आवेदन पर दलीलें सुनी गईं। प्रथम दृष्टया हम अंतरिम आवेदन के अनुरोध ‘ए’ और रिट याचिका के अनुरोध ‘बी’ की समानता को देखते हुए इस स्तर पर अंतरिम आवेदन पर कोई राहत देने के इच्छुक नहीं हैं। ऐसी अंतरिम राहत देना रिट याचिका में अंतिम राहत देने के समान होगा।” इसमें कहा गया है कि 2024 का चुनाव सात चरणों में हो रहा है, जिनमें से पांच चरण पहले ही समाप्त हो चुके हैं और छठा चरण 25 मई को है। शीर्ष अदालत ने कहा, ”जिस विशेष अनुपालन पर आप (एनजीओ) जोर दे रहे हैं, उसके लिए न केवल श्रम शक्ति की आवश्यकता होगी, बल्कि परमादेश (एक न्यायिक रिट) की भी आवश्यकता होगी। इस अवधि के दौरान यह संभव नहीं है। हमें जमीनी हकीकत के प्रति सचेत रहना होगा और प्रक्रिया को बीच में नहीं बदल सकते।” पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा, ”अब हम आपको बता देते हैं, हम इसे लंबित रखेंगे और चुनाव खत्म होने के बाद अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका के साथ सुनवाई करेंगे।
चुनाव के बीच में हस्तक्षेप नहीं करने का रुख अपनाया जाना चाहिये।” निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने अंतरिम आवेदन की विचारणीयता पर सवाल उठाया और दावा किया कि यह झूठे आरोपों के साथ महज संदेह और आशंका के आधार पर दाखिल किया गया है। पीठ ने दवे से याचिका की विचारणीयता के बारे में कई सवाल पूछे। अदालत ने यह भी पूछा कि एनजीओ द्वारा दायर अंतरिम आवेदन में किया गया अनुरोध 2019 की रिट याचिका में किये गये अनुरोध के समान क्यों है। पीठ ने दवे से कहा, ”आपके (अंतरिम) आवेदन में अनुरोध ‘ए’ आपकी रिट याचिका में अनुरोध ‘बी’ है। यह अंतिम राहत है, जिसके लिए आपने रिट याचिका में अनुरोध किया है। अब आप इसे अंतरिम राहत के रूप में कैसे दावा कर सकते हैं?” अंतरिम आवेदन में अनुरोध ‘ए’ में कहा गया है, ”जारी लोकसभा चुनाव-2024 में भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई)को प्रत्येक चरण के मतदान के समापन के बाद सभी मतदान केंद्रों के फॉर्म 17 सी भाग- एक (रिकॉर्ड किए गए वोटों का खाता) की स्कैन की गई सुपाठ्य प्रतियां तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एनजीओ का अंतरिम आवेदन 2024 के चुनाव से संबंधित ईसीआई द्वारा जारी किए गए विभिन्न प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित है और पूछा कि क्या कोई अदालत रिट याचिका लंबित रखते हुए, अंतरिम आदेश द्वारा, अंतिम राहत की प्रकृति की राहत दे सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा, ”हमने पाया है कि कई जनहित याचिकाओं में निजी हित, प्रचार हित और पैसा हित होता है। इसलिए यह हमारा काम है कि हम फालतू रिट याचिकाओं पर अंकुश लगाएं।” जब दवे ने पीठ से कहा कि वह उसकी नाराजगी को समझते हैं और दलील दी कि चुनाव आयोग अंतरिम आवेदन पर आपत्ति जताकर याचिकाकर्ता को बाहर नहीं कर सकता है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि यह अदालत है, जो प्रक्रियात्मक आधार पर सवाल उठा रही है, निर्वाचन आयोग नहीं। न्यायमूर्ति दत्ता ने दवे से कहा, ”यह नाराजगी का सवाल नहीं है। हर कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के पक्ष में है। हमने 26 अप्रैल के फैसले में कहा है कि जो भी सुधार (चुनावी सुधार) की जरूरत है, वह किया जाए।
तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि सभी 543 लोकसभा क्षेत्रों के निर्वाचन अधिकारी आसानी से मतदान प्रतिशत का डेटा अपलोड करने का प्रबंध कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने 17 मई को एनजीओ की याचिका पर निर्वाचन आयोग से एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा था, जिसमें लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण का मतदान संपन्न होने के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्र-वार मत प्रतिशत के आंकड़े आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। निर्वाचन आयोग ने हलफनामा दाखिल कर एनजीओ के अनुरोध का विरोध किया और कहा कि इससे चुनावी माहौल ”खराब” होगा और आम चुनावों के बीच चुनावी तंत्र में ”अराजकता” पैदा होगी।