चुनावी राजनीति से दूर रहकर भी कांग्रेस और ”इंडिया” के लिए एक मजबूत स्तंभ साबित हुई हैं सोनिया

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कहते हैं कि सोनिया गांधी का संयम और सादगी उनकी सबसे बड़ी सियासी ताकत है। इसकी बानगी इस लोकसभा चुनाव में देखने को मिली कि जब वह चुनावी राजनीति में सक्रिय न रहते हुए भी अपनी पार्टी की रणनीति को धार देने और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को व्यापक रूप देने में महत्वपूर्ण साबित हुईं। पिछले कुछ अरसे से अस्वस्थ चल रहीं 77 वर्षीय सोनिया गांधी ने इस बार प्रचार नहीं किया, लेकिन कुछ मौकों पर वह पार्टी के लिए मतदाताओं से समर्थन की अपील जरूर जारी की। ऐसी ही एक मार्मिक अपील उन्होंने रायबरेली के मतदाताओं से की जिसमें उन्होंने कहा कि वह अपने बेटे को उनके हवाले कर रही हैं और उम्मीद करती हैं कि मतदाता उनका ख्याल रखेंगे।

शायद इस अपील का भी एक असर रहा कि गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट से राहुल गांधी ने करीब चार लाख के भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की। लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल में जब कांग्रेस की करारी शिकस्त की भविष्यवाणी की गई तो सोनिया गांधी ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा कि असल नतीजे इन अनुमान से बिल्कुल उलट साबित होंगे। इटली में जन्मीं और राजीव गांधी से विवाह के बाद देश के रसूखदार राजनीतिक परिवार का हिस्सा बनीं सोनिया गांधी का सियासी सफर 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान बुलंदियों पर पहुंचा। वह संप्रग की प्रमुख थीं और यहां तक उन्हें ‘सुपर प्राइम मिनिस्टर’ तक की संज्ञा दी गई। सोनिया गांधी अब राजस्थान से राज्यसभा में पहुंच गई हैं। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह पार्टी की रणनीति का नेतृत्व करती रहीं।

इस लोकसभा चुनाव से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन के बनने और इसके विस्तार में भी उनकी एक अहम भूमिका रही। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी, शरद पवार और वामपंथी नेताओं सहित विपक्षी नेताओं से बात कर सभी को एकजुट किया। उन्होंने मुंबई और बेंगलुरु सहित ‘इंडिया’ गठबंधन की लगभग सभी बैठकों में भाग लिया। सोनिया गांधी भारत की सबसे पुरानी पार्टी की सबसे लंबे समय अध्यक्ष रहीं। उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक कांग्रेस का नेतृत्व किया है। कांग्रेस के सामने खड़े हर बड़े संकट को दूर करने में उनका प्रमुख योगदान रहा। अनुभवी मल्लिकार्जुन खड़गे को संगठनात्मक बागडोर सौंपने के फैसले से भी उन्होंने कांग्रेस को ताकत दी।

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