केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में बचाव करते हुए कहा कि यह (गिरफ्तारी) जरूरी थी, क्योंकि उन्होंने कथित आबकारी नीति घोटाले में अपनी भूमिका के बारे में सवालों के जवाब में “टालमटोल और असहयोग” का रास्ता चुना। केजरीवाल ने केंद्रीय एजेंसी द्वारा अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है और इस याचिका के जवाब में सीबीआई ने दायर अपने विस्तृत हलफनामे में कहा कि उसने आम आदमी पार्टी (आप) नेता को 25 जून, 2024 को उनसे पूछताछ करने के बाद ही गिरफ्तार किया था। हलफनामे में कहा गया है, “यह आवश्यक था क्योंकि उन्हें रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के संबंध में (अन्य गवाहों से) आमना-सामना कराना था, जबकि जांच के उचित निष्कर्ष के लिए यह आवश्यक था और विशेष रूप से इसलिए क्योंकि याचिकाकर्ता जानबूझकर जांच को पटरी से उतार रहा था। गिरफ्तारी की आवश्यकता रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर भी उत्पन्न हुई और चूंकि याचिकाकर्ता ने 25 जून को अपनी पूछताछ के दौरान टालमटोल और असहयोग करने का विकल्प चुना था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सीबीआई के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच सितंबर की तारीख तय की। सीबीआई ने कहा कि हालांकि केजरीवाल के पास कोई मंत्री पद नहीं है, लेकिन समय के साथ यह सामने आया कि अब समाप्त हो चुकी आबकारी नीति के निर्माण में सभी महत्वपूर्ण निर्णय उनके इशारे पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मिलीभगत से लिये गए थे, जिनके पास आबकारी विभाग भी था। उसने कहा, “याचिकाकर्ता को शुरू में सीआरपीसी की धारा 160 के तहत जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था, क्योंकि वह मामले के तथ्यों से परिचित व्यक्तियों में से एक थे। हालांकि, कुछ ऐसी सामग्री थी जो उन पर संदेह की सुई घुमा रही थी। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, यह स्पष्ट होने लगा कि याचिकाकर्ता (अरविंद केजरीवाल) की नयी आबकारी नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है।” चौदह अगस्त को, शीर्ष अदालत ने मामले में केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया और उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर जांच एजेंसी से जवाब मांगा। केजरीवाल को 26 जून को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पांच अगस्त को मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी को वैध ठहराया था और कहा था कि सीबीआई द्वारा किए गए कार्यों में कोई दुर्भावना नहीं थी, जिसने यह प्रदर्शित किया कि आप प्रमुख गवाहों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं जो उनकी गिरफ्तारी के बाद ही गवाही देने का साहस जुटा सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने उन्हें सीबीआई मामले में नियमित जमानत के लिए निचली अदालत जाने के लिए कहा था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी के बाद प्रासंगिक साक्ष्य एकत्र करने के उपरांत मुख्यमंत्री के खिलाफ सबूतों का चक्र बंद हो गया और यह नहीं कहा जा सकता कि यह बिना किसी उचित कारण या अवैध था। इक्कीस मार्च को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए मुख्यमंत्री केजरीवाल को 20 जून को धनशोधन मामले में निचली अदालत ने जमानत दे दी थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी थी। बारह जुलाई को शीर्ष अदालत ने उन्हें धनशोधन मामले में अंतरिम जमानत दी थी। आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन से जुड़ी कथित अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच का दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा आदेश दिये जाने के बाद 2022 में आबकारी नीति को रद्द कर दिया गया था। सीबीआई और ईडी के अनुसार, आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिया गया।