नई दिल्ली। दिल्ली सरकार खेतों में पराली जलाने की घटनाएं रोकने एवं 5,000 एकड़ बासमती और गैर-बासमती खेती वाली भूमि पर पूसा जैव-अपघटक (बायो-डिकम्पोजर) का छिड़काव करेगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने मंगलवार को यह जानकारी दी। राय ने यह भी कहा कि पंजाब में 5,000 एकड़ या 2,023 हेक्टेयर भूमि पर जैव-अपघटक का छिड़काव प्रायोगिक आधार पर किया जाएगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित पूसा जैव-अपघटक एक प्रकार का तरल पदार्थ है, जो पराली को 15 से 20 दिनों में खाद में बदल सकता है। राय ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली सरकार इस साल 5,000 एकड़ बासमती और गैर-बासमती खेती वाली भूमि पर जैव-अपघटक का मुफ्त छिड़काव करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने जैव-अपघटक की प्रभावशीलता के बारे में जागरूकता पैदा करने और अपने खेतों में इस तरल पदार्थ का उपयोग करने के इच्छुक किसानों को पंजीकृत करने के लिए 21 टीमों का गठन किया है।
राय ने कहा कि सरकार को इस तरल पदार्थ को तैयार नहीं करना होगा क्योंकि आईएआरआई इसे पहले ही तैयार कर चुका है। उन्होंने कहा, “हम इसे सीधे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से खरीदेंगे। दस लीटर घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पंजाब के किसानों ने घोल से पराली के गलने में लगने वाले समय को लेकर चिंता जताई है और आईएआरआई के वैज्ञानिक इस मुद्दे पर ध्यान देंगे।
इस घोल का पाउडर संस्करण भी उपलब्ध है। दिल्ली सरकार लगातार तीसरे साल राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाकों में कृषि भूमि पर पूसा घोल का इस्तेमाल करेगी। पिछले साल दिल्ली में 844 किसानों की 4,300 एकड़ भूमि पर इसका छिड़काव किया गया था। 2020 में 310 किसानों की 1,935 एकड़ भूमि पर इसका इस्तेमाल किया गया था। अधिकारियों के मुताबिक इस घोल के छिड़काव पर प्रति एकड़ सिर्फ 30 रुपये का खर्च आता है। राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर और नवंबर में वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि के प्रमुख कारणों में प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों के साथ पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाना भी है। किसान गेहूं और आलू की फसल लगाने से पहले खेतों को जल्दी साफ करने के लिए पराली जलाते हैं। आईएआरआई के अनुसार, पंजाब में पिछले साल 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच पराली जलाने की 71,304 घटनाएं हुईं जबकि 2020 में समान अवधि में 83,002 ऐसी घटनाएं हुईं। पिछले साल सात नवंबर को दिल्ली के ‘पीएम 2.5’ प्रदूषण में पराली जलाने से हुए प्रदूषण का हिस्सा 48 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
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