दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि फांसीघर मामले में दिल्ली विधानसभा की विशेषाधिकार समिति द्वारा जारी समन के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया, की याचिका प्रथम दृष्टया ‘विचारणीय नहीं’ है। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने यह मौखिक टिप्पणी उस वक्त की जब उनके समक्ष याचिका सुनवाई के लिए आई और विधानसभा कार्यालय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के अनुरोध पर इसे आगे की कार्यवाही के लिए बुधवार को सूचीबद्ध कर दिया गया, क्योंकि वह (वकील) किसी अन्य अदालत में व्यस्त थे। दिल्ली विधानसभा ने आप के वरिष्ठ नेताओं अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, रामनिवास गोयल और राखी बिड़ला को तलब किया है और उन्हें पिछली आप सरकार के फांसीघर संबंधी दावों की जांच कर रही समिति के समक्ष 13 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा है।
केजरीवाल और सिसोदिया ने समन को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उनका कहना है कि नोटिस से पता चलता है कि कार्यवाही किसी शिकायत या रिपोर्ट पर आधारित नहीं है और न ही इसमें विशेषाधिकार हनन या अवमानना का कोई प्रस्ताव है। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, विधानसभा कार्यालय, विशेषाधिकार समिति और उपसचिव (विधान) के वकीलों ने प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए कहा कि याचिका विचारणीय नहीं है। उन्होंने अदालत से बुधवार को मामले की सुनवाई करने का आग्रह किया। आप नेताओं के वकील ने अनुरोध किया कि स्थगन आवेदन में नोटिस जारी किया जाए, क्योंकि उनके द्वारा चुनौती दी गई नोटिस, अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
विधानसभा परिसर के अंदर 22 अगस्त, 2022 को ‘फांसी घर’ का उद्घाटन केजरीवाल और सिसोदिया की उपस्थिति में किया गया था, जब वे दिल्ली के क्रमशः मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री थे। केजरीवाल समारोह के मुख्य अतिथि थे और विधानसभा की तत्कालीन उपाध्यक्ष राखी बिड़ला सम्मानित अतिथि थीं, जबकि विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष गोयल ने समारोह की अध्यक्षता की थी। समन को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि ‘फांसी घर’ के उद्घाटन के तीन साल से अधिक समय बाद और सातवीं विधानसभा के भंग होने के कई महीनों बाद, पांच अगस्त को दिल्ली की आठवीं विधानसभा में पहली बार इस ढांचे की प्रामाणिकता से संबंधित मुद्दा उठाया गया था। ‘फांसी घर’ स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिए गए बलिदान से संबंधित एक प्रतीकात्मक स्मारक के रूप में स्थापित किया गया था। याचिका में कहा गया है कि विधायिका को यह अधिकार तो है कि वह किसी विषय पर जानकारी एकत्र करने या जन-निगरानी के लिए जांच समितियां बना सकती है, ताकि कानून बनाने में मदद मिल सके, लेकिन दिल्ली विधानसभा परिसर में जो “इमारतों की डिज़ाइन और मरम्मत” से जुड़ा मामला है, वह न तो कानून बनाने की प्रक्रिया से जुड़ा है और न ही जन-निगरानी के उद्देश्य से। इसमें कहा गया है कि विशेषाधिकार समिति को उन ऐतिहासिक तथ्यों की प्रामाणिकता की जांच करने का अधिकार नहीं है, जिन्हें पूर्व अध्यक्ष और पूर्व उपाध्यक्ष ने ध्यान में रखा था।
इसके साथ ही, उद्घाटन समारोह में शामिल हुए गणमान्य व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने का भी उसे अधिकार नहीं है। अगस्त में मानसून सत्र के दौरान, विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने सदन को बताया कि जिस तथाकथित ब्रिटिशकालीन फांसी घर का उद्घाटन केजरीवाल ने 2022 में नवीनीकरण के बाद विधानसभा परिसर में बड़े धूमधाम से किया था वह मूल रूप से एक ‘टिफिन रूम’ था। विधानसभा परिसर का 1912 का नक्शा दिखाते हुए गुप्ता ने कहा था कि ऐसा कोई दस्तावेज़ या सबूत नहीं है, जो दर्शाता हो कि उस जगह का इस्तेमाल फांसी देने के लिए किया गया था। उन्होंने मामले को समिति के पास भेज दिया था।

