आतिशी ने विधानसभा में लगाया पक्षपात का आरोप, स्पीकर ने आरोपों को बताया राजनीतिक

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दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने बुधवार को अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता पर तीन मार्च को संपन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान विपक्षी विधायकों को चुन-चुनकर निशाना बनाकर ‘लोकतांत्रिक मानदंडों को कमजोर करने’ का आरोप लगाया, जिसके बाद नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। आतिशी ने बुधवार को अध्यक्ष गुप्ता को संबोधित करते हुए एक पत्र में आरोप लगाया कि विपक्षी विधायकों को उपराज्यपाल के अभिभाषण (25 फरवरी को) के दौरान नारेबाजी करने के लिए अनुचित तरीके से बाहर निकाल दिया गया जबकि भाजपा विधायकों पर इसी तरह की नारेबाजी के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। आतिशी ने पत्र में लिखा, उपराज्यपाल (वीके सक्सेना) के संबोधन के दौरान विपक्ष और सत्ता पक्ष के विधायकों ने नारेबाजी की। विपक्ष ने ‘जय भीम’ के नारे लगाए जबकि सत्ता पक्ष ने ‘मोदी, मोदी, मोदी’ के नारे लगाए।

सभी विपक्षी विधायकों को विधानसभा से बाहर कर दिया गया। हालांकि,सत्ता पक्ष के किसी भी विधायक को मार्शल द्वारा बाहर नहीं किया गया या उनके द्वारा बार-बार नारे लगाने के बावजूद उन्हें बाहर जाने के लिए नहीं कहा गया।” उन्होंने निलंबित विधायकों को विधानसभा परिसर से बाहर करने के फैसले की भी आलोचना की और इसे ‘स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व’ करार दिया। उन्होंने इसके अलावा दावा किया कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान ‘आप’ विधायकों को बोलने का केवल 14 प्रतिशत समय दिया गया जबकि भाजपा विधायकों को 86 प्रतिशत समय दिया गया। अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आतिशी के आरोपों को ‘राजनीतिक’ करार देते हुए अपने जवाब में कहा कि ‘आप’ विधायकों के खिलाफ कार्रवाई विधानसभा के नियमों के अनुसार की गई है।

उन्होंने कहा, “मुझे आश्चर्य है कि ‘आप’ और विपक्षी पार्टी के सदस्य अपने खराब व्यवहार के लिए माफी मांगने के बजाय मेरे वैध निर्देशों में खामियां ढूंढ रहे हैं।” विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा परिसर में प्रवेश को विनियमित करने के लिए नियम 277 का भी हवाला दिया। गुप्ता ने बोलने के समय के मुद्दे पर तर्क दिया कि समय का आवंटन संसदीय परंपराओं के अनुसार और निलंबन के कारण ‘आप’ विधायकों की अनुपस्थिति से भी प्रभावित था। उन्होंने कहा, “निलंबन के कारण विपक्षी सदस्य तीन दिन सदन में उपस्थित नहीं थे। हालांकि, सदन में उपस्थित अमानतुल्ला खान को बहस में भाग लेने की अनुमति दी गई। इसके बाद उन्होंने सदन से बाहर चले जाने का निर्णय लिया और आगे की चर्चा में भाग नहीं लिया।