भारत की अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी है रूस से तेल खरीद

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अभिषेक उपाध्याय। रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना आज भारत की अर्थव्यवस्था के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। जब पूरी दुनिया यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ती ऊर्जा कीमतों से जूझ रही थी, तब भारत ने अपने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए रूस से तेल आयात को बढ़ाया। इस फैसले ने न सिर्फ भारतीय बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर रखा, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाते के संतुलन को भी मजबूती दी।

पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते मॉस्को ने अपने तेल को एशियाई देशों के लिए भारी छूट पर बेचना शुरू किया। भारत ने इस मौके का लाभ उठाया और अब वह रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार बन चुका है। 2024-25 के दौरान भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 35 प्रतिशत तक पहुँच गई। इससे भारत को अरबों डॉलर की बचत हुई, जो विकास परियोजनाओं और ऊर्जा क्षेत्र के विस्तार में काम आ रही है।

सस्ते रूसी तेल ने भारत के रिफाइनिंग सेक्टर को भी नई ऊर्जा दी है। रिफाइनरी कंपनियाँ इस तेल को प्रोसेस कर वैश्विक बाजारों में पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कर रही हैं, जिससे विदेशी मुद्रा आमदनी बढ़ी है। इसके अलावा, महंगाई पर नियंत्रण रखने में भी यह कदम बेहद उपयोगी साबित हुआ है।

हालांकि पश्चिमी देशों से भारत को कभी-कभी आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन नई दिल्ली ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य सिर्फ अपने नागरिकों और अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा करना है। आज जब वैश्विक ऊर्जा बाजार अनिश्चितता से घिरा हुआ है, तब रूस से तेल खरीद भारत के लिए स्थिरता और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक दूरदर्शी कदम साबित हो रही है।