नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय राष्ट्रीय राजधानी में जमीन की कमी को देखते हुए दिल्ली में चल रही सभी विकास परियोजनाओं के वास्ते काटे गए वृक्षों की क्षतिपूर्ति के लिए पड़ोसी राज्यों में वनीकरण की मंजूरी दे सकता है। सूत्रों ने यह जानकारी दी। पर्यावरण मंत्रालय में एक सूत्र ने बताया कि उन्होंने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के एक पत्र पर संज्ञान लिया है, जिसमें कहा गया है कि शहर में सभी हरित क्षेत्र भर गए हैं और आगामी विकास परियोजनाओं के लिए प्रतिपूर्ति वनीकरण के वास्ते जमीन की भारी कमी है।
सूत्र ने कहा, यह एक नीतिगत मुद्दा है। हमने इस पर संज्ञान लिया है।
निश्चित तौर पर दिल्ली में जमीन की कमी है। हम मंत्रालय की वन मूल्यांकन समिति की बैठक में इस मामले को उठाने जा रहे हैं। इस अनुरोध को स्वीकार किए जाने की संभावना है। डीडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उसने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और रेलवे समेत कई एजेंसियों के प्रतिपूर्ति वनीकरण के लिए जमीन उपलब्ध कराने के अनुरोधों को खारिज कर दिया है क्योंकि जमीन की कमी है।
डीडीए ने मार्च में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर राष्ट्रीय राजधानी में जमीन की कमी को देखते हुए दिल्ली में चल रही सभी परियोजनाओं के लिए काटे गए वृक्षों की भरपाई के वास्ते पड़ोसी राज्यों में वनीकरण की मंजूरी देने का अनुरोध किया था। वन संरक्षण कानून के तहत जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, विकास कार्यों में लगी एजेंसी को उचित गैर-वन्य भूमि पर प्रतिपूर्ति वनीकरण करना होता है। अगर परियोजनाएं केंद्र सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा लागू की गयी हैं तो प्रतिपूर्ति वनीकरण क्षरित भूमि पर भी किया जा सकता है।
डीडीए के एक अधिकारी ने कहा, मास्टर प्लान के तहत चिह्नित ज्यादातर हरित क्षेत्रों में पहले ही पौधारोपण हो चुका है। छोटे-छोटे टुकड़ों में उपलब्ध अन्य खाली जमीन की दिल्ली के नागरिकों की मूल विकासात्मक जरूरतों के लिए आवश्यकता है। दिल्ली वन विभाग द्वारा कराए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यमुना के डूब क्षेत्र में करीब 9,000 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है जिसका इस्तेमाल नदी की पारिस्थितिकी के लिए पौधारोपण तथा राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के लिए प्रतिपूर्ति वनीकरण में किया जा सकता है।