ईडी को आरटीआई के दायरे से छूट, लेकिन यौन उत्पीड़न के आरोपों पर जानकारी दी जा सकती है: हाईकोर्ट

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नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन उसे मानवाधिकार उल्लंघनों से संबंधित जानकारी प्रदान करने के लिए निर्देश दिया जा सकता है, जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोप भी शामिल हैं। अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उन दो आदेशों को चुनौती देने संबंधी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह व्यवस्था दी, जिनमें आरटीआई आवेदकों को कुछ जानकारी देने का निर्देश दिया गया था। एक आवेदक ने जहां भर्ती नियमों से संबंधित प्रशासनिक जानकारी मांगी थी, वहीं अन्य आवेदक- ईडी की कानूनी सलाहकार – ने अपने द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित जानकारी दिये जाने का आग्रह किया था। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने पहले मामले में पारित सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन एजेंसी को दूसरे मामले में आरटीआई आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी आठ सप्ताह के भीतर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया है, ईडी को आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 24 के तहत उक्त जानकारी (भर्ती नियमों पर) का खुलासा करने से छूट प्राप्त है। इस तरह सीआईसी द्वारा पारित 27 नवंबर, 2019 के आदेश को रद्द कर दिया गया है।

अदालत ने हाल में दिये अपने आदेश में कहा, जहां तक रिट याचिका संख्या 5588/2019 का संबंध है, इस न्यायालय की राय में, आरटीआई आवेदन में मांगी गई जानकारी आवेदक/प्रतिवादी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप से संबंधित है… इस मामले में यौन उत्पीड़न के आरोपों की जानकारी का खुलासा न करना स्पष्ट रूप से मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में आएगा, जैसा कि आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 24 के प्रावधानों द्वारा छूट दी गई है। अन्य आवेदक द्वारा केवल भर्ती नियमों के बारे में” मांगी गई जानकारी के बारे में, अदालत ने कहा कि यह ”ऐसा मामला नहीं है जिसमें कोई मानवाधिकार उल्लंघन हो और इसीलिए इसे प्रावधान से छूट नहीं दी गई है। अदालत ने आदेश दिया, ”ईडी को आठ सप्ताह के भीतर आरटीआई आवेदक/प्रतिवादी द्वारा मांगी गई जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि उसने यौन उत्पीड़न के किसी भी आरोप की पड़ताल नहीं की है।

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