विधायिका ही गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा सकती है : दिल्ली हाईकोर्ट

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को गायों और गोवंश के पशुओं के वध पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ लगाने का निर्देश देने से इनकार करते हुए कहा है कि इस संबंध में किसी भी कदम के लिए सक्षम विधायिका से संपर्क किया जाए। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अगुवाई वाली पीठ ने बृषभान वर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा बनाये गये कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी में गोवध पर पहले से ही पाबंदी है। पीठ ने कहा कि अन्य राज्यों के सिलसिले में याचिकाकर्ता उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के आलोक में उपयुक्त कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि विधायिका को कोई खास कानून बनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में कहा, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि केवल सक्षम विधायिका ही गायों और गोवंश के मवेशियों के वध पर पाबंदी से संबंधित प्रश्न पर निर्णय ले सकती है तथा उच्चतम न्यायालय अपने रिट क्षेत्राधिकार के तहत विधायिका को कोई विशेष कानून बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। अंतत: यह अदालत इस मामले में अपीलकर्ता को विधायिका से संपर्क करने की छूट प्रदान करती है।

पीठ ने कहा, दिल्ली प्रदेश में पहले से ही कानून है, जिसकी चर्चा ऊपर हो चुकी है और उस कानून में मवेशियों के वध पर पाबंदी का प्रावधान है। जहां तक अन्य राज्यों की बात है तो याचिकाकर्ता माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के आलोक में उपयुक्त कदम उठाने के लिए निश्चित ही स्वतंत्र होगा। याचिकाकर्ता ने अदालत से केंद्र को गायों और गोवंश के अन्य पशुओं के वध पर अविलंब पूर्ण प्रतिबंध’ लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। गोवंश के इन मवेशियों में ‘बूढे और कामलायक नहीं रह गये बैल, सांड, भैंस आदि शामिल हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के आलोक में याचिकाकर्ता इस याचिका में मांगी गयी राहत के लिए दबाव नहीं बना सकता है।

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