निर्वाचन आयोग सुनिश्चित करे कि चुनावों में ”अपमानजनक” सामग्री का इस्तेमाल न हो : हाई कोर्ट

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी ”अपमानजनक” सामग्री का इस्तेमाल न करें। मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने उस जनहित याचिका पर यह निर्देश पारित किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अज्ञात नंबरों से जनता को ‘स्पैम कॉल’ और वॉयस संदेश भेजे गए ताकि मुफ्त की सुविधाएं पाने के लिए एक विशेष राजनीतिक दल को वोट देकर सत्ता में लाया जा सके। ‘स्पैम कॉल’ एक अनचाही फोन कॉल है जिसका उद्देश्य अक्सर धोखाधड़ी करना, गुमराह करना या व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करना होता है।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर ईसीआई द्वारा प्रस्तावित कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए याचिका का निपटारा कर दिया। अदालत ने कहा कि राज्य निर्वाचन अधिकारी, मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों द्वारा प्रसारित किए जा रहे ऐसे संदेशों और विज्ञापन सामग्री की जांच करने के लिए पूरी तरह से सशक्त और प्रतिबद्ध हैं, जिनसे चुनाव में माहौल खराब होने का खतरा है। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धांत कुमार ने कहा कि आयोग ने याचिकाकर्ताओं की शिकायत का संज्ञान लिया है और दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को आरोपों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें ‘वॉयस कॉल’ समेत राजनीतिक विज्ञापनों को प्रमाणित करना अनिवार्य किया गया है।

कुमार ने कहा कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त होते ही उचित कार्रवाई की जायेगी। पीठ ने कहा, ”इसलिए हम निर्देश देते हैं कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली जांच रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई की जाए।” विधानसभा चुनावों के संबंध में पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से चुनाव सुनिश्चित कराना भारत निर्वाचन आयोग का एक प्राथमिक कर्तव्य है। इसने कहा, ”इसे (ईसीआई को) चुनाव के संचालन की निगरानी करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से चुनाव सुनिश्चित करने के लिए हर कदम उठाने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। इसलिए यह निर्वाचन आयोग का कर्तव्य है कि वह ऐसे संदेशों के प्रसार को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाए, जिनसे माहौल खराब होने की आशंका है।” यह जनहित याचिका तीन वकीलों द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अपमानजनक और दुर्भावनापूर्ण सामग्री फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई किये जाने का अनुरोध किया गया था।

व्यक्तिगत रूप से पेश हुए डी. दीवान, कशिश धवन और अर्शिया जैन ने दावा किया कि वॉयस कॉल के माध्यम से संदेश दिया गया कि यदि किसी विशेष राजनीतिक दल को वोट नहीं दिया गया तो मतदाताओं को दी जाने वाली मुफ्त की सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी। चुनाव स्थगित किये जाने के अनुरोध पर अदालत ने कहा कि चुनावों के बीच में ऐसा अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जनहित याचिका में ऐसा कोई आधार उपलब्ध नहीं है। पीठ ने कहा, ”इस तरह हम याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा की गई कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए जनहित याचिका का निपटारा करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि न केवल याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर कानून के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जायेगा कि राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों पर चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी तरह की अपमानजनक सामग्री का उपयोग न करने के लिए अंकुश लगाया जायेगा।

याचिका में आरोप लगाया गया कि ‘स्पैम कॉल’ सार्वजनिक क्षेत्र में घृणा, पूर्वाग्रह, दुर्भावनापूर्ण और अपमानजनक सामग्री फैलाने के इरादे से किए जा रहे हैं। जनहित याचिका में कहा गया है कि एक वॉयस कॉल प्राप्त हुई जिसमें एक विशेष राजनीतिक दल का नाम लेकर कहा गया है कि अगर किसी अन्य राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान किया गया तो उनकी सरकार की ओर से दी जाने वाली सभी मुफ्त सुविधाएं 11 फरवरी, 2025 से वापस ले ली जाएंगी। इस मामले में आम आदमी पार्टी को प्रतिवादी बनाया गया है। इसमें यह भी जिक्र किया गया है कि दिल्ली विधानसभा की नवनिर्वाचित सरकार इसी तिथि (11 फरवरी 2025) से कार्यभार ग्रहण करेगी। वॉयस कॉल के हवाले से याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के मतदाता मुफ्त सुविधाएं प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें किसी अन्य राजनीतिक दल को वोट नहीं देना चाहिए।