नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सिनेमा एवं रंगमंच की प्रख्यात हस्ती अमोल पालेकर की उस जनहित याचिका पर केंद्र का जवाब मांगा है, जिसमें ‘ओटीटी’ मंचों से जुड़े सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। पालेकर ने अपनी याचिका में इस बात पर जोर दिया है कि ये नियम सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के खिलाफ हैं और कलाकारों की स्वतंत्रता का हनन है तथा सरकार को ”सुपर सेंसर” के रूप में काम करने की शक्तियां प्रदान करते हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा ने याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया और इसकी सुनवाई, आईटी नियमों को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ अगस्त के लिए निर्धारित कर दी।
प्रख्यात अभिनेता का अदालत में प्रतिनधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन कर रही हैं। पालेकर ने अपनी याचिका में कहा है कि ये नियम सरकार को न केवल नियमन, बल्कि किसी भी सामग्री को रोकने की असीम शक्ति देते है, इस तरह ‘सेंसरशिप’ की एक ऐसी प्रणाली बनती है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुमति-योग्य प्रतिबंधों से आगे तक जाती है। अधिवक्ता मृगांक प्रभाकर के मार्फत दायर याचिका में कहा गया है, ”ओटीटी (ओवर द टॉप) मंचों पर पेश की जाने वाली सामग्री के बारे में शिकायतों से निपटने के लिए सरकार संचालित तंत्र के साथ-साथ लागू नियमों में मौजूद ‘सेंसरशिप’ कुछ और नहीं, बल्कि भयावह प्रभाव डालने वाले तथा अनुच्छेद 19(1)(ए) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हनन करता है।” याचिका में यह भी कहा गया है कि ये नियम दर्शकों के अपनी रूचि की सामग्री चुनने और कारोबार करने के ओटीटी मंचों के मूल अधिकार को भी प्रभावित करते हैं। मौजूदा नियमों के तहत, सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग कंपनियों को विवादास्पद सामग्री शीघ्रता से हटाने, शिकायत के निवारण के लिए अधिकारी नियुक्त करने तथा जांच में सहयोग करने की जरूरत है।