परीक्षा में दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए सीट आरक्षित करने संबंधी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से बुधवार को उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें सभी भर्ती चक्रों में संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा में दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए एक प्रतिशत सीट आरक्षित करने का अनुरोध किया गया है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने ‘मिशन एक्सेसिबिलिटी’ नामक संगठन की याचिका पर यूपीएससी और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी), केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग को नोटिस जारी किया। अदालत ने अधिकारियों को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई तीन दिसंबर के लिए स्थगित कर दी।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील राहुल बजाज ने यूपीएससी और डीओपीटी को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की धाराओं 34(1)(ए) के तहत संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा (सीएमएसई) में दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले अभ्यर्थियों के लिए एक प्रतिशत सीट आरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता संगठन के एक सदस्य द्वारा सीएमएसई-2024 में दृष्टिहीन/कम दृष्टि वाले अभ्यर्थी के रूप में बैठने के बाद यह याचिका दायर की गई है। अधिवक्ताओं अमृतेश मिश्रा और साराह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 34 में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी सरकारी प्रतिष्ठानों को कुल रिक्तियों में से कम से कम चार प्रतिशत रिक्तियां दिव्यांगजनों के लिए आरक्षित रखनी चाहिए, जिनमें से कम से कम एक प्रतिशत रिक्तियां विशेष रूप से दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होनी चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि यूपीएससी, जो केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं, भारतीय रेलवे और अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों के तहत विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए सीएमएसई आयोजित करता है, उक्त वैधानिक दायित्व का पालन करने में विफल रहा है। याचिका में कहा गया है कि यूपीएससी ने सीएमएसई-2025 के लिए भी परीक्षा नोटिस जारी किया है, जिसमें सीएमएसई 2024 की अधिसूचना जैसी ही खामियां हैं।