दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें तिहाड़ जेल परिसर से आतंकवादियों- मोहम्मद अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट- की कब्रों को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। दोनों आतंकवादियों को मौत की सजा सुनाई गई थी और तिहाड़ जेल परिसर में फांसी दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, ”कोई भी कानून या नियम जेल परिसर के अंदर दाह संस्कार या दफनाने पर रोक नहीं लगाता है।
उच्च न्यायालय के संकेत को भांपते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से आग्रह किया कि याचिका वापस लेने और इसे कुछ आंकड़ों के साथ इसे पुनः दाखिल करने की अनुमति दी जाए। पीठ ने आदेश दिया कि जनहित याचिका को ”वापस लिया गया मानते हुए खारिज किया जाता है।” पीठ ने कहा, ”किसी जनहित याचिका में राहत पाने के लिए अदालत का रुख करने के लिए, आपको हमें संवैधानिक अधिकारों, मौलिक अधिकारों या वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन दिखाना होगा। कोई भी कानून या नियम जेल परिसर के अंदर दाह संस्कार या दफनाने पर रोक नहीं लगाता है।” जनहित याचिका में संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि अगर आवश्यक हो तो शव को किसी गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए, ताकि ‘आतंकवाद का महिमामंडन’ और जेल परिसर का दुरुपयोग रोका जा सके।
‘विश्व वैदिक सनातन संघ’ और जितेंद्र सिंह नाम के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया था कि केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित जेल के अंदर इन कब्रों का निर्माण और उनका निरंतर अस्तित्व ‘अवैध, असंवैधानिक और जनहित के विरुद्ध’ है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा ने दावा किया कि इन कब्रों की मौजूदगी ने तिहाड़ केंद्रीय जेल को ‘कट्टरपंथी तीर्थस्थल’ में बदल दिया है, जहां चरमपंथी तत्व दोषी ठहराए गए आतंकवादियों का महिमामंडन करने के लिए इकट्ठा होते हैं। इसमें कहा गया, “यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा व सार्वजनिक व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि भारत के संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन करते हुए आतंकवाद को भी सही ठहराता है।
याचिका में दावा किया गया कि जेल के अंदर इन कब्रों का होना ‘दिल्ली कारागार नियमावली, 2018’ के स्पष्ट प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया था, “इसलिए याचिकाकर्ता इस न्यायालय से शीघ्र हस्तक्षेप की गुहार करते हैं कि प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वे तिहाड़ जेल से उक्त कब्रों को हटाकर उन्हें सुरक्षित और गुप्त स्थान पर पुनः स्थापित करें, जैसा कि अजमल कसाब और याकूब मेमन जैसे फांसी पाए आतंकवादियों के मामलों में स्थापित राज्य प्रथा के अनुसार हर सावधानी बरती गई थी, ताकि उनके महिमामंडन से बचा जा सके।” याचिका में कहा गया है कि भट्ट और गुरु दोनों ने ‘चरमपंथी जिहादी विचारधारा’ के प्रभाव में आतंकवादी कृत्यों को अंजाम दिया, जिससे भारत की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सुरक्षा को गंभीर खतरा है। इस दलील पर कि दो कब्रों की मौजूदगी जेल में अन्य कैदियों के लिए परेशानी का सबब बन रही है, पीठ ने सवाल किया कि यह परेशानी कैसे हो सकती है और क्या इस संबंध में किसी कैदी की ओर से कोई शिकायत मिली है।
पीठ ने कहा कि ”प्रथम दृष्टया कब्रें परेशानी का सबब नहीं बनतीं।” अदालत इस दलील से असहमत थी कि कब्रें स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इसने यह भी पूछा कि याचिकाकर्ता लगभग 12 साल बाद यह मुद्दा क्यों उठा रहे हैं। अदालत ने पूछा, ”किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कानून-व्यवस्था से जुड़ी कोई समस्या न पैदा हो। सरकार ने इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जेल में दफनाने का फैसला किया। क्या आप 12 साल बाद इसे चुनौती दे सकते हैं?” भट्ट को 1984 में और अफजल गुरु को फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी।