फिनलैंड ट्रेनिंग के लिए जाएंगे दिल्ली के शिक्षक? केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल को फिर भेजी फाइल

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दिल्ली सरकार ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को फिनलैंड भेजने के लिए उपराज्यपाल कार्यालय को फिर से एक प्रस्ताव भेजा है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को ट्वीट किया, दिल्ली सरकार के शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने का प्रस्ताव पुनः उपराज्यपाल साहब के पास भेजा है। कुछ दिन पहले ही उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने इसी प्रकार के एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उम्मीद जताई है कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए शिक्षकों को विदेश यात्रा की अनुमति मिल जाएगी। सिसोदिया के ट्वीट का उल्लेख करते हुए केजरीवाल ने कहा, मुझे उम्मीद है कि माननीय उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के स्कूल के शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए विदेश जाने की अनुमति देंगे। दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया था कि पहले के प्रस्ताव को वापस करते समय, उपराज्यपाल सक्सेना ने उन्हें पहले कार्यक्रम का लागत-लाभ विश्लेषण करने के लिए कहा था। इस मामले को लेकर पिछले सप्ताह आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी के नेतृत्व में पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। उपराज्यपाल के कार्यालय ने कहा था कि प्रस्ताव को खारिज नहीं किया गया है, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) नीत सरकार को इसका समग्र मूल्यांकन करने की सलाह दी गई है।

उपराज्यपाल को इस बार भेजे गए प्रस्ताव में सिसोदिया ने कहा कि सरकार ने लागत-लाभ विश्लेषण सहित सभी पहलुओं से प्रस्ताव की जांच की और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए इसे आवश्यक पाया। प्रस्ताव में कहा गया, यदि मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने अपने शिक्षकों को विदेश भेजने का फैसला किया है तो उपराज्यपाल बार-बार हल्की-फुल्की आपत्तियां उठाकर इसे कैसे टाल सकते हैं? यह लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है कि एक अनिर्वाचित व्यक्ति लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के लगभग हर फैसले को बदल रहा है। प्रस्ताव में कहा गया, हमारे देश का संभ्रांत वर्ग सामंती मानसिकता का शिकार है, वे अपने बच्चों को विदेश भेजना चाहते हैं लेकिन गरीब बच्चों के शिक्षकों को विदेश भेजे जाने पर भी कड़ी आपत्ति जताते हैं और लागत-लाभ विश्लेषण चाहते हैं। उपराज्यपाल की टिप्पणी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है, ऐसी प्रतिगामी सामंती मानसिकता का 21वीं सदी के भारत में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। प्रस्ताव में कहा गया है, उच्चतम न्यायालय के अनुसार, उपराज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय के लागत-लाभ विश्लेषण का आदेश देने की शक्ति नहीं है।

सिसोदिया ने इस प्रस्ताव को लेकर कहा, ”इसलिए, माननीय उपराज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय के लागत-लाभ विश्लेषण का आदेश देने की शक्ति नहीं है। माननीय उपराज्यपाल ने कहा है कि वह उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि वह उन्हें उच्चतम न्यायालय की राय मानते हैं। हम माननीय उपराज्यपाल को याद दिलाना चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय के आदेश न केवल भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए बाध्यकारी हैं, बल्कि देश का कानून बन गए हैं। माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए सभी बाध्य हैं। राज निवास के एक अधिकारी ने कहा था, यह दोहराया जाता है कि उपराज्यपाल ने फिनलैंड में प्राथमिक कक्षाओं के प्रभारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रस्ताव को खारिज नहीं किया है।

इसके विपरीत दिया गया कोई भी बयान भ्रामक और शरारत से प्रेरित है। गौरतलब है कि राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने दिसंबर 2022 और मार्च 2023 में प्राथमिक कक्षाओं के 30 प्रभारियों के दो समूहों को फिनलैंड भेजने की योजना बनाई थी। परिषद ने अपनी वार्षिक योजना में बजट का प्रावधान भी किया है और उसे इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा सहायता अनुदान दिया गया है। इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच गतिरोध बना हुआ है।

इस बीच, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद गौतम गंभीर ने शुक्रवार को फिनलैंड के प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के नेता ने अस्पतालों, साफ पानी और प्रदूषण से निपटने के लिए इस तरह के उत्साही प्रयास किए होते तो दिल्ली का चेहरा और भाग्य बदल गया होता। गंभीर ने ट्वीट किया, जितनी लड़ाई केजरीवाल फिनलैंड की यात्रा करवाने के लिए कर रहे हैं, इतनी लड़ाई अगर जन लोकपाल, प्रदूषण, साफ़ पानी, यमुना और अस्पतालों के लिए करते, तो दिल्ली की तस्वीर और तकदीर बदल जाती।

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