आबकारी नीति: केजरीवाल और सिसोदिया की याचिकाओं पर 12 अगस्त को सुनवाई करेगी दिल्ली हाई कोर्ट

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नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कथित आबकारी नीति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवायी 12 अगस्त को तय की। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश वकील ने कहा कि 2024 में दायर याचिकाएं निरर्थक हैं क्योंकि एजेंसी को अपेक्षित मंजूरी मिल गई थी। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने न्यायमूर्ति रवीन्द्र डुडेजा के समक्ष कहा, “हमारे पास मंजूरी है।

मंजूरी अदालत में दाखिल कर दी गई है।” केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन मामले में आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल और अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए ईडी को इस साल जनवरी में मंजूरी दे दी थी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार, विशेष अदालत ने घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में दाखिल आरोपपत्र पर 9 जुलाई, 2024 को संज्ञान लिया, जबकि उनके खिलाफ अभियोजन के लिए कोई मंजूरी नहीं थी, जो आवश्यक थी क्योंकि कथित अपराध के समय वह एक लोक सेवक थे। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने भी इसी तरह की आपत्तियां उठाई हैं। सिसोदिया ने अपनी याचिका में कहा कि चूंकि उनके खिलाफ आरोप एक लोक सेवक के तौर पर उनके द्वारा किए गए आधिकारिक कार्यों से संबंधित हैं, इसलिए मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता है। केजरीवाल ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करने का आग्रह करने के अलावा मामले में सभी कार्यवाही रद्द करने का भी अनुरोध किया है। उच्च न्यायालय ने केजरीवाल की याचिका पर 21 नवंबर 2024 को ईडी को नोटिस जारी किया था और उस स्तर पर निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

सिसोदिया की याचिका पर एजेंसी को 2 दिसंबर 2024 को नोटिस जारी किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने केजरीवाल को धन शोधन मामले में 12 जुलाई 2024 को अंतरिम जमानत दी थी जबकि शीर्ष अदालत ने उन्हें सीबीआई मामले में 13 सितंबर 2024 को जमानत पर रिहा किया था। ईडी और सीबीआई द्वारा दर्ज मामलों में सिसोदिया को 9 अगस्त 2024 को उच्चतम न्यायालय ने जमानत दी थी। सीबीआई और ईडी के अनुसार, केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार के तहत आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नीति लागू की और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 तक इसे रद्द कर दिया।