आईपीसी में जहां दंड पर जोर था, बीएनएस में न्याय पर जोर है: रविशंकर प्रसाद

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में जहां दंड पर जोर था, वहीं भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में न्याय पर जोर दिया गया है और यही अंग्रेजी शासन की मानसिकता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की सोच के अंतर को दर्शाता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता प्रसाद ने भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 पर लोकसभा में चर्चा में भाग लेते हुए यह बात कही। भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए इन्हें लाया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीनों विधेयकों को चर्चा एवं पारित करने के लिए सदन में रखा था। शाह ने संसद की स्थायी समिति की ओर से सुझाए गए संशोधनों के मद्देनजर गत 12 दिसंबर को पूर्ववर्ती तीन विधेयकों को वापस ले लिया था और इनकी जगह उपरोक्त नए विधेयक पेश किए थे। प्रसाद ने कहा कि आज का दिन दंड और न्याय प्रक्रिया के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा, ”आईपीसी में जहां दंड देने पर जोर था, वहीं भारतीय न्याय संहिता में न्याय पर जोर है, जो (न्याय) हमें लोगों को देना है।” प्रसाद ने कहा कि यह सोच के बड़े अंतर को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के समय अन्याय की पराकाष्ठा भी कानून का दिखावा करके की जाती थी। प्रसाद ने कहा कि आजादी के बाद इतने सालों तक इन औपनिवेशिक कानूनों को सुविचारित तरीके से बदलने का प्रयास नहीं किया गया और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस काम को किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ”जब ‘भारत एक खोज’ लिखने वाले लोग भारत की खोज कर रहे थे तो वह इस पक्ष को देखना क्यों भूल गए? पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से घोषणा की थी कि देश में कोई औपनिवेशिक प्रतीक नहीं रहेगा और इस दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि सोच का अंतर इस बात से ही पता चल जाता है कि ”देश में राम मंदिर को बनने में 500 साल क्यों लग गए? कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वानाथ मंदिर के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ता है। प्रसाद ने कहा, मैंने पहले किसी कानून में इतना व्यापक विचार-विमर्श नहीं देखा। गृहमंत्री शाह ने सभी सांसदों को पत्र लिखा। अनेक हितधारकों के सुझाव सुने गए। गृहमंत्री जी स्वयं 158 परामर्श में उपस्थित थे।

उन्होंने नए कानूनों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर न्याय तक की पूरी प्रक्रिया डिजिटल करने का प्रावधान है, वहीं तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य करके प्रक्रिया को पारदर्शिता बनाया जा रहा है। प्रसाद ने कहा कि आईपीसी में कई गंभीर और प्रमुख अपराध नीचे थे, वहीं अंग्रेजों की सोच को मजबूत करने वाले कानून ऊपर थे। उन्होंने कहा, ”लेकिन भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से जुड़ी धाराओं को ऊपर रखा गया है। मानव से संबंधित अपराध भी ऊपर हैं। प्रसाद ने कहा कि अदालतों द्वारा निश्चित समयावधि में सुनवाई करके 30 दिन के अंदर निर्णय देने का प्रावधान भी सराहनीय है। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री को इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है कि अदालतों में कई बड़े मुकदमे अरसे से लंबित हैं। प्रसाद ने संसद में सुरक्षा चूक की घटना और इसे लेकर विपक्ष के प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ लोग सुरक्षा चूक में शामिल लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या ”केरल, कर्नाटक या पश्चिम बंगाल की विधानसभाओं में इस तरह की घटनाएं हों तो उचित लगेंगी।

प्रसाद ने कहा, लोकतंत्र नियम और संयम से चलता है। विपक्ष की इस मामले में टिप्पणियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं। बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब ने कहा कि पहली बार आतंकवाद और भ्रष्टाचार को सामान्य दंडनीय कानूनों के तहत लाया जाना स्वागत योग्य कदम है। उन्होंने कहा, ये विधेयक हमारे न्यायशास्त्र की शुरुआत है। इस दिशा में दूसरे भी प्रयास कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया। प्रधानमंत्री (मोदी) की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया है। हम यहां इतिहास बनता देख रहे हैं। चर्चा में शिवसेना के गजानन कीर्तिकर और वाईएसआरसीपी के टी रंगैया ने भी भाग लिया।

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