दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कार्यकर्ता शरजील इमाम की उस याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा जिसमें 2019 के जामिया हिंसा मामले में उसके खिलाफ आरोप तय करने के अधीनस्थ अदालत के आदेश को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने इस मामले में मौजूदा चरण में अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने मुख्य याचिका के साथ-साथ स्थगन आवेदन पर पुलिस को नोटिस जारी किया और मामले को आगे की सुनवाई के वास्ते 24 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
इमाम ने अधीनस्थ अदालत के सात मार्च के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि वह न केवल उकसाने वाला व्यक्ति था, बल्कि ”हिंसा भड़काने की एक बड़ी साजिश के सरगनाओं” में से एक था और मामले में उसके खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश दिया गया था। अधीनस्थ अदालत ने पाया कि जामिया मिलिया इस्लामिया के पास 13 दिसंबर 2019 को इमाम द्वारा दिया गया भाषण ”द्वेषपूर्ण” था, ”एक धर्म को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने वाला” और ”वास्तव में घृणास्पद” था। अदालत इमाम और अन्य के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही है, जिनके खिलाफ न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम (पीडीपीपी) और सशस्तत्र अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा मामले की जांच कर रही है। अधीनस्थ अदालत ने अनल हुसैन, अनवर, यूनुस और जुम्मन के खिलाफ आईपीसी और पीडीपीपी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था और कहा था कि पुलिस के एक गवाह तथा उसके मोबाइल फोन रिकॉर्ड से यह साबित होता है कि वह दंगाई भीड़ का हिस्सा था। यह मामला 11 दिसंबर 2019 को संसद में नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया और शाहीन बाग में 2019-2020 के विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है।