राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नई पीढ़ी के लिए सरस्वती नदी के बारे में तथ्यों को प्रमाण सहित पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने की आवश्यकता पर बल देते हुए मंगलवार को कहा कि जनता तो श्रद्धा के कारण नदी के अस्तित्व से जुड़े विषय को स्वीकार कर लेगी लेकिन विद्वानों को प्रमाण चाहिए। मोहन भागवत ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘द्विरूपा सरस्वती’ के विमोचन के अवसर पर यह बात कही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख ने कहा कि जैसे भगवान राम के बारे में यह स्थापित हुआ कि उनका जन्म अयोध्या में हुआ, राम सेतु है…उसी प्रकार से सरस्वती नदी के बारे में भी प्रमाण सहित बातें सामने आनी चाहिए। उन्होंने कहा, यह सत्य सिद्ध होनी चाहिए कि सरस्वती नदी थी, सरस्वती नदी है ताकि इसके विरोधियों की बातें असत्य सिद्ध हो जाए।
भागवत ने कहा कि सरस्वती नदी के बारे में नई पीढ़ी के लिए पाठ्य पुस्तकों में प्रमाण सहित विषय को शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, सरस्वती नदी से हमारा इतिहास जुड़ा हुआ है। लेकिन अंग्रेजों ने हमें यही बताया कि न तो हमारा कोई राज गौरव है, न ही कोई धन गौरव तथा सारी चीजें हमें दुनिया से ही मिली। भागवत ने कहा कि इस प्रकार से झूठ का एक भ्रमजाल खड़ा किया गया। उन्होंने दावा किया कि इसके बाद एक ऐसा वर्ग आया जो असत्य गढ़कर भ्रमजाल को फैलाता चला गया और लोग उसमें फंसते चले गए। उन्होंने कहा, लेकिन आजादी के बाद हमें इस भ्रमजाल को उतार फेंकना चाहिए।
उन्होंने कहा कि श्रद्धावान को विश्वास चाहिए और आज नयी पीढ़ी को प्रमाण चाहिए और ऐसे में सरस्वती नदी के बारे में पाठ्य पुस्तकों में प्रमाण सहित बातें आनी चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि सरस्वती नदी के बारे में उपग्रह के चित्रों में धरती के नीचे जल स्रोत की बातें आई है, उसके उद्गम एवं मार्ग के बारे में बातें स्पष्ट रूप से बाहर आनी चाहिए। उन्होंने कहा, जनता तो श्रद्धा से मान लेगी लेकिन विद्वान लोगों को प्रमाण चाहिए। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी के विषय में सरकार और प्रशासन अपने तरीके से काम कर रही है और करेगी लेकिन जनता को एकजुट होना पड़ेगा।