राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को कहा कि निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी प्रक्रिया में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल दुनिया के सभी लोकतंत्रों के लिए एक उदाहरण है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में इसका उपयोग बढ़ाया जाएगा। राष्ट्रपति ने महिलाओं, दिव्यांगों और कमजोर समूहों की भागीदारी बढ़ाकर समावेशी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आयोग के प्रयासों की भी सराहना की। राष्ट्रपति यहां 14वें राष्ट्रीय मतदाता दिवस कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। निर्वाचन आयोग की स्थापना भारत के गणतंत्र बनने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को की गई थी। पिछले 14 वर्षों से आयोग का स्थापना दिवस राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। मुर्मू ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में आयोग ने 17 लोकसभा चुनाव और 400 से अधिक विधानसभा चुनाव कराए हैं। लोकसभा चुनाव कराने की प्रक्रिया को दुनिया की सबसे बड़ी कवायद बताते हुए उन्होंने कहा कि लोगों ने 12 लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदान किया और इसका प्रबंधन 1.5 करोड़ मतदान कर्मियों द्वारा किया गया।
मतदाता पहचान पत्र प्राप्त करने वाले युवा मतदाताओं को बधाई देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मताधिकार पाने के बाद उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि समारोह में उपस्थित युवा मतदाता देश के करोड़ों नौजवानों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो 2047 का भारत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। राष्ट्रपति ने यह सुनिश्चित करने के लिए आयोग द्वारा किए गए प्रयासों का भी उल्लेख किया कि कोई भी मतदाता छूट न जाए। इस अवसर पर निर्वाचन आयोग के प्रकाशन ‘आम चुनाव 2024 के लिए ईसीआई की पहल’ की पहली प्रति मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार द्वारा राष्ट्रपति मुर्मू को प्रस्तुत की गई। यह पुस्तक चुनाव के स्वतंत्र, निष्पक्ष, समावेशी, सुलभ और भागीदारीपूर्ण संचालन को सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग के प्रत्येक प्रभाग द्वारा की गई पहल का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करती है।
फिल्म निर्माता राज कुमार हिरानी के सहयोग से निर्वाचन आयोग द्वारा निर्मित लघु मतदाता जागरुकता फिल्म माई वोट माई ड्यूटी भी प्रदर्शित की गई। लघु फिल्म में कई मशहूर हस्तियों को उनके संदेशों के साथ लोकतंत्र की भावना और एक वोट की शक्ति को उजागर करते हुए दिखाया गया है। अपने संबोधन में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने चुनाव में महिलाओं का मतदान सुनिश्चित करने का श्रेय संविधान निर्माता बी आर आंबेडकर को दिया। उन्होंने कहा कि आंबेडकर ने 1928 में ही महिलाओं के लिए वोट देने के अधिकार का मुद्दा उठाया था। मेघवाल ने कहा कि संविधान सभा की बहस के दौरान आंबेडकर ने एक वोट, एक व्यक्ति, एक मूल्य के सिद्धांत की वकालत की थी।
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