नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि उच्चतर न्यायपालिका में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल और वहां का ‘खर्च’ न्याय तक समान पहुंच की राह की बाधाओं में शामिल हैं। उन्होंने इन बाधाओं को हटाने पर जोर दिया। यहां एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और सामाजिक रूप से वंचित समूहों के लोगों के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि उन्हें अपने अधिकारों से अवगत कराया जा सके। मुर्मू ने कहा, समानता न सिर्फ न्याय की बुनियाद है, बल्कि उसकी एक जरूरी शर्त भी है। उन्होंने कहा, बहुत समय हो गया जब दुनिया ने यह घोषणा की थी कि सभी मनुष्य समान हैं, लेकिन हमें खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या हम सभी को न्याय तक समान पहुंच प्राप्त है। राष्ट्रपति ने कहा कि व्यवहार में, इसका मतलब यह है कि कुछ लोग अक्सर कई कारकों के कारण अपनी शिकायतों के निवारण में असमर्थ होते हैं। मुर्मू ने यहां ”कमजोर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर’ विषय पर आयोजित पहले क्षेत्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित किया।
इस दौरान उन्होंने कहा, ”हमारा प्रमुख काम उन अवरोधकों को हटाना है। स्वाभाविक रूप से सबसे बड़ा अवरोधक अक्सर न्याय प्राप्त करने पर आने वाला खर्च है। उन्होंने कहा कि सभी के लिए न्याय तक पहुंच उनके दिल के करीब का विषय रहा है। उन्होंने समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को उपचारात्मक कार्रवाई के लिए कानूनी संस्थानों से संपर्क करने में मदद के लिए उठाए गए कई कदमों का उल्लेख किया। राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) द्वारा उठाए गए कदमों ने भी कानूनी सहायता के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुर्मू ने कहा, कुल मिलाकर उद्देश्य ‘न्याय प्राप्त करने में सहूलियत’ को बढ़ाना है। लेकिन मुझे लगता है कि लोगों के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने की जरूरत है, न केवल उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सचेत किया जाए, बल्कि उन्हें आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता दिलाने में भी मदद की जाए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में उच्चतर न्यायपालिका की भाषा अंग्रेजी है, जिससे समाज के एक बड़े वर्ग के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं को समझना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी वेबसाइट पर विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में फैसले प्रकाशित करना शुरू कर दिया है। कानूनी सहायता संस्थान भी भाषाई अंतर को पाटने में मदद करते हैं। मुर्मू ने कहा कि प्रौद्योगिकी कानूनी सहायता तक पहुंच को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। राष्ट्रपति ने कहा, इसने दूरियां कम की हैं और कई मामलों में न्याय को आसान बना दिया है… न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के साथ अभिनव दृष्टिकोण का एकीकरण इसे अधिक समावेशी और अधिक कुशल बनाएगा। राष्ट्रपति ने कहा कि इस सम्मेलन में ‘ग्लोबल साउथ’ के 69 देशों ने भागीदारी की, जो अफ्रीका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं। इस कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, शीर्ष अदालत के कई न्यायाधीश और अन्य गणमान्य लोग शामिल हुए।