जन भागीदारी से ही जल संरक्षण के प्रयास सफल हो सकते हैं : प्रधानमंत्री मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को जल संरक्षण अभियानों में लोगों की भागीदारी का महत्व रेखांकित करते हुए कहा कि अकेले सरकार के प्रयासों से कुछ नहीं हो सकता। राज्यों के जल मंत्रियों के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जल राज्यों के बीच सहयोग व समन्वय का विषय होना चाहिए और शहरीकरण की तेज गति को देखते हुए उन्हें पहले से ही इसके लिए योजना तैयार करनी चाहिए। उनकी इस टिप्पणी के कई मायने हैं, क्योंकि दशकों से कई राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मनरेगा के तहत, ज्यादा से ज्यादा काम पानी पर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के अभियानों में जनता को, सामाजिक संगठनों को और सिविल सोसायटी को ज्यादा से ज्यादा शामिल करना होगा। मोदी ने कहा, जब किसी अभियान से जनता जुड़ती है तो उसे उसकी गंभीरता का भी पता चलता है। गौरतलब है कि जल शक्ति मंत्रालय ने पांच-छह जनवरी को भोपाल में जल से जुड़े विषय पर राज्यों के मंत्रियों के पहले अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, राज्यों के मंत्रियों के इस पहले अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन का विषय ‘वॉटर विज़न@2047’ है। जल संरक्षण के लिए केंद्र सरकार की अटल भूजल संरक्षण योजना का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक संवेदनशील अभियान है और इसे उतनी ही संवेदनशीलता से आगे बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, भूजल प्रबंधन के लिए बनाए गए प्राधिकरण सख्ती से इस दिशा में काम करें, यह भी जरूरी है। भूजल रिचार्ज के लिए सभी जिलों में बड़े पैमाने पर वाटर-शेड का काम होना जरूरी है। और मैं तो चाहूंगा कि मनरेगा में सबसे अधिक काम पानी के लिए किया जाए। प्रधानमंत्री ने कहा कि उद्योग और खेती दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें स्वाभाविक रूप से पानी की आवश्यकता बहुत होती है। उन्होंने कहा कि इन दोनों ही क्षेत्रों से जुड़े लोगों के बीच विशेष अभियान चलाकर उन्हें जल सुरक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए। उन्होंने कहा, सरकार के अकेले प्रयास से ही सफलता नहीं आती। जो सरकार में हैं, उन्हें इस सोच से बाहर निकलना होगा कि उनके अकेले के प्रयास से अपेक्षित परिणाम मिल जाएंगे। इसलिए जल संरक्षण से जुड़े अभियानों में जनता, सामाजिक संगठनों, सिविल सोसाइटी को भी ज्यादा से ज्यादा जोड़ना होगा।

स्वच्छ भारत अभियान का उदाहरण देते हुए मोदी ने कहा कि जब लोग इससे जुड़े तो जनता में एक चेतना आई और फिर इसमें सफलता सुनिश्चित हुई। उन्होंने कहा, इसलिए जनता को हम जितना ज्यादा जागरूक करेंगे, उतना ही प्रभाव पैदा होगा। इसके लिए जल जागरूकता महोत्सवों का आयोजन किया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर होने वाले मेलों में पानी को लेकर जागरूकता संबंधी कई आयोजन जोड़े जा सकते हैं। विशेषकर, नई पीढ़ी इस विषय के प्रति जागरूक हो, इसके लिए हमें पाठ्यक्रम से लेकर स्कूलों की गतिविधियों तक में नवोन्मेषी तरीके सोचने होंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवर बना रही है तथा कम समय में 25 हजार अमृत सरोवर बन भी चुके हैं। मोदी ने कहा कि नीतिगत स्तर पर भी पानी से जुड़ी परेशानियों के समाधान के लिए सरकारी नीतियां और नौकरशाही प्रक्रियाओं से बाहर आना होगा। उन्होंने कहा, हमें समस्याओं को पहचानने और उसके समाधान को खोजने के लिए प्रौद्योगिकी, उद्योग और खासकर स्टार्टअप्स को साथ जोड़ना होगा। जियो-सेन्सिंग और जियो मैपिंग जैसी तकनीकों से हमें इस दिशा में काफी मदद मिल सकती है।
प्रधानमंत्री ने ग्राम पंचायतों को पानी को केंद्र में रखकर अगले पांच साल की रूपरेखा तैयार करने का सुझाव दिया, जिसमें पानी की आपूर्ति से लेकर स्वच्छता और कचरा प्रबंधन तक की व्यवस्था हो। उन्होंने कहा, किस गांव में कितना पानी आवश्यक है और उसके लिए क्या काम हो सकता है, इसके आधार पर कुछ राज्यों में पंचायत स्तर पर वाटर बजट तैयार किया गया है। इसे दूसरे राज्यों द्वारा भी अपनाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जल संरक्षण के क्षेत्र में भी चक्रीय अर्थव्यवस्था की बड़ी भूमिका है क्योंकि जब संवर्धित जल को पुन: इस्तेमाल किया जाता है और शुद्ध जल को संरक्षित किया जाता है तो इससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत लाभ होता है। उन्होंने कहा, हमारी नदियां और जल निकाय पानी के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे अहम हिस्सा होते हैं। हमारी कोई भी नदी या जल निकाय बाहरी कारकों से प्रदूषित न हो, इसके लिए हमें हर राज्य में कचरा प्रबंधन और जल निकासी का नेटवर्क बनाना होगा।

मोदी ने कहा, संवर्धित जल का दोबारा इस्तेमाल हो, इसके लिए भी हमें प्रभावी व्यवस्था पर ध्यान देना होगा। नमामि गंगे मिशन को उदाहरण बनाकर बाकी राज्य भी अपने यहां नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए ऐसे ही अभियान शुरू कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि जल सहयोग व समन्वय का विषय होना चाहिए तथा यह सबकी जिम्मेदारी है कि यह राज्यों के बीच सहयोग का विषय बने। मोदी ने कहा कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए भी पानी के विषय में अभी से सोचना पड़ेगा। उन्होंने कहा, शहरों के बढ़ने की जो गति है उस गति से हमें और गति बढ़ानी पड़ेगी। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि इस सम्मेलन में हर राज्य एक दूसरे के अनुभव साझा करेंगे और सार्थक चर्चा होगी।

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