नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक सैन्यकर्मी को दिव्यांग पेंशन प्रदान करने का आदेश दिया, जिसे ‘सित्जोफ्रेनिया’ से पीड़ित होने के कारण सेवा मुक्त कर दिया गया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि किसी सैन्यकर्मी को सेवामुक्त करने का प्राधिकारी का निर्णय एक चिकित्सा रिपोर्ट पर आधारित होता है, जिसमें कोई कारण नहीं होता। न्यायमूर्ति अभय एस ओका तथा न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि दिव्यांग पेंशन प्रदान करने अथवा अस्वीकार करने के लिए चिकित्सा बोर्ड द्वारा कारण बताने की आवश्यकता महत्वपूर्ण, निर्णायक तथा आवश्यक है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मात्र औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक आवश्यक सामग्री है, जिसके आधार पर पेंशन स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी को दिव्यांग पेंशन प्रदान करने अथवा अस्वीकार करने के बारे में निर्णय लेना होता है। पीठ ने कहा, ”तदनुसार, हमारी राय में, यदि सैनिक को बिना किसी कारण के चिकित्सकीय राय के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया जाता है या दिव्यांग पेंशन से वंचित किया जाता है, तो यह प्राधिकरण द्वारा की गई कार्रवाई पर प्रहार होगा, और ऐसी कार्रवाई कानून के सामने ठहर नहीं सकती।” पीठ ने सात मई को लिए गए फैसले में कहा, ”इसलिए, हम मानते हैं कि यदि किसी सैनिक को बर्खास्त करने के लिए प्राधिकरण द्वारा कोई कार्रवाई की जाती है और सैनिक को चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर दिव्यांग पेंशन से वंचित किया जाता है, जिसमें दी गई राय के लिए कोई कारण नहीं बताया जाता है, तो प्राधिकरण की ऐसी कार्रवाई कानून के सामने कायम नहीं रह सकेगी।
शीर्ष अदालत एक सैन्यकर्मी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, क्षेत्रीय पीठ, कोच्चि द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश द्वारा दिव्यांग पेंशन देने के अपीलकर्ता के दावे को अस्वीकार कर दिया गया था। याचिकाकर्ता 17 नवंबर, 1988 को भारतीय सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुआ था, और नौ साल से अधिक सेवा में रहने के बाद, सित्जोफ्रेनिया से पीड़ित होने के कारण उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। चिकित्सा अक्षमता के आधार पर सेना से उनकी सेवामुक्ति, 30 मार्च, 1998 को कमान अस्पताल, पश्चिमी कमान, चंडीमंदिर में आयोजित चिकित्सा बोर्ड की राय पर आधारित थी, जिसमें पाया गया था कि अक्षमता से जुड़ी यह बीमारी अगस्त 1993 में शुरू हुई थी, जिस अवधि के दौरान अपीलकर्ता ने अपनी सेवा दी थी। यह भी पाया गया कि दिव्यांगता न तो सैन्य सेवा के कारण थी और न ही उसकी वजह से बढ़ी थी और अपीलकर्ता की उक्त बीमारी सेवा से जुड़ी नहीं थी। अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने कहा कि सित्जोफ्रेनिया से पीड़ित होने के कारण सेवा से सैनिकों की बर्खास्तगी के मामलों से निपटने के दौरान बहुत अधिक उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें सैन्य सेवा के साथ उक्त बीमारी के संबंध को साबित करने में कई बाधाओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।