भले ही कोई पक्ष हो, नफरती भाषण देने वालों से कानून के तहत निपटें: सुप्रीम कोर्ट

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उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘चाहे किसी भी पक्ष का हो’, नफरती भाषण देने वाले सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस.वी.एन भट्टी की पीठ ने विभिन्न राज्यों में नफरत फैलाने वाले भाषणों पर अंकुश लगाने के निर्देश संबंधी याचिकाओं पर एक संक्षिप्त सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इन याचिकाओं में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के नूंह-गुरुग्राम हिंसा मामले के मद्देनजर मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने वाले हिंदू संगठनों के खिलाफ कार्रवाई संबंधी एक याचिका भी शामिल है। एक वकील ने पीठ के समक्ष दावा किया कि केरल की एक राजनीतिक पार्टी ‘इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग’ (आईयूएमएल) ने जुलाई में राज्य में एक रैली आयोजित की थी, जहां ‘हिंदुओं की मौत’ जैसे नारे लगाए गए थे।

पीठ ने कहा, हम बहुत स्पष्ट हैं। भले ही कोई भी पक्ष हो, सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए और कानून अपना काम करेगा। अगर कोई किसी ऐसे कृत्य में शामिल होता है,जिसे हम नफरती भाषण के रूप में जानते हैं, तो उनसे कानून के अनुसार निपटा जाएगा। इस बारे में हम पहले ही अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि समय की कमी के कारण पीठ आज मामले पर आगे सुनवाई नहीं कर पाएगी, क्योंकि उसने पहले ही बिहार के जातिगत सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाएं सूचीबद्ध कर रखी हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषण के सभी मामलों की सुनवाई अगले शुक्रवार को की जाएगी।

न्यायमूर्ति खन्ना ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा, ”मैंने तहसीन पूनावाला के मामले में 2018 के फैसले और इस अदालत द्वारा जारी दिशानिर्देशों को पढ़ा है। मुझे उम्मीद है कि दिशानिर्देशों का सख्ती से अनुपालन किया जा रहा है। प्रमुख याचिकाकर्ताओं में से एक शाहीन अब्दुल्ला का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नफरत का कोई पक्ष नहीं होता है। पीठ ने उसके बाद याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों को लिखित दलीलें पेश करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तिथि निर्धारित की।

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