सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की मरीजों को दवाओं के दुष्प्रभाव बताना अनिवार्य किए जाने संबंधी याचिका

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चिकित्सा पेशेवरों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वे मरीजों को लिखी गई दवा से जुड़े सभी प्रकार के संभावित जोखिमों और दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दें। उच्चतम न्यायालय दिल्ली उच्च न्यायालय के 15 मई के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, यह व्यावहारिक नहीं है। याचिकाकर्ता जैकब वडक्कनचेरी की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि याचिका में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है कि क्या चिकित्सकों को अपने मरीजों को लिखी जा रही दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यदि इसका पालन किया गया तो एक चिकित्सक 10-15 से अधिक मरीजों का इलाज नहीं कर सकेगा और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मामले दर्ज हो सकते हैं।

अधिवक्ता भूषण ने कहा, इससे चिकित्सा लापरवाही के उपभोक्ता संरक्षण मामलों से बचने में मदद मिलेगी।” उन्होंने कहा कि चिकित्सकों के लिए मरीजों को लिखी गई दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में एक मुद्रित प्रपत्र प्राप्त करना आसान है। पीठ ने कहा कि एक चिकित्सक अलग-अलग मरीजों को अलग-अलग दवाएं लिख सकते हैं। भूषण ने दलील दी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गलत दवाएं लिखे जाने से मरीजों को होने वाले नुकसान पर चर्चा की है। पीठ ने कहा कि चिकित्सक सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले से नाखुश हैं जिसमें चिकित्सा पेशे को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में लाया गया है। पीठ ने कहा ”क्षमा करें” और उसने याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय में दायर याचिका में केंद्र और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वे देश में सेवाएं देने वाले सभी चिकित्सा पेशेवरों के लिए यह अनिवार्य करें कि, वे मरीज को लिखे गए पर्चे के साथ ही (क्षेत्रीय भाषा में एक अतिरिक्त पर्ची के रूप में) दवा या फार्मास्युटिकल उत्पाद से जुड़े सभी प्रकार के संभावित जोखिमों और दुष्प्रभावों के बारे में भी बताएं।