बलवंत सिंह राजोआना की क्षमा अर्जी पर 18 मार्च तक फैसला करे केंद्र : सुप्रीम कोर्ट

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उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआना की क्षमा याचिका पर 18 मार्च तक निर्णय करे। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “हम आपको अंतिम अवसर के तौर पर समय दे रहे हैं। आप या तो निर्णय लें या फिर हम गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करेंगे।” पीठ राजोआना की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने क्षमा अर्जी के निस्तारण में ‘अत्यधिक देरी’ होने के आधार पर मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का अनुरोध किया है।

मेहता ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए कहा कि क्षमा की अर्जी विचाराधीन है। उन्होंने छह सप्ताह का समय देने का अनुरोध करते हुए कहा, ”यह एक आतंकवादी हमले में तत्कालीन मुख्यमंत्री की हत्या का मामला है। यह गंभीर मामला है और इसके गंभीर परिणाम होंगे।” राजोआना के वकील ने दलील दी कि उनका मुवक्किल करीब 29 साल कारावास की सजा काट चुका है जिसमें से उसने 15 साल मृत्युदंड का इंतजार करने वाले कैदी के तौर पर बिताए हैं। पीठ ने कहा, ”हम 18 मार्च को मामले के गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करेंगे। तब तक यदि आप (केंद्र) निर्णय ले सकते हैं तो यह अच्छी बात है। किसी भी तरह से आप निर्णय लें ताकि हमें सुविधा हो।

अन्यथा हम इस पर (मृत्युदंड माफ करने के लिए निर्देश का अनुरोध करने वाली याचिका पर) गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करेंगे।” राजोआना के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को कुछ राहत दी जानी चाहिए और रिहा किया जाना चाहिए क्योंकि क्षमा अर्जी काफी समय से लंबित है। इस पर मेहता ने कहा, ”यही समस्या है। क्या उसे समाज में वापस आना चाहिए?” पीठ ने टिप्पणी की कि कई मामलों में शीर्ष अदालत ने मृत्यु तक कारावास की सजा दी है। पीठ ने कहा, ”हम आपकी बात सुनेंगे। हम उन्हें कुछ समय देंगे।” केंद्र ने पिछले साल 25 नवंबर को शीर्ष अदालत से कहा था कि राजोआना की क्षमा अर्जी का मामला काफी संवेदनशील है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 नवंबर को याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव को राजोआना की क्षमा अर्जी विचारार्थ उनके समक्ष रखने को कहने वाले अपने पूर्व के आदेश पर रोक लगा दी थी।

न्यायालय से 18 नवंबर, 2024 की सुबह आदेश पारित होने के बाद सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से आग्रह किया कि इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि मुद्दे में ‘संवेदनशीलता’ है। मेहता ने कहा कि फाइल गृह मंत्रालय के पास है न कि राष्ट्रपति के पास। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब तलब किया था। चंडीगढ़ स्थित सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर 31 अगस्त 1995 को हुए धमाके में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री और 16 अन्य लोग मारे गए थे। जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी।

उच्चतम न्यायालय ने तीन मई, 2023 को राजोआना की मौत की सजा को बदलने से इनकार करते हुए कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी क्षमा अर्जी पर विचार कर सकते हैं। राजोआना ने अपनी नयी याचिका में दलील दी है कि उसने कुल 28 वर्ष और आठ महीने की सजा काट ली है, जिसमें से 17 वर्ष उसने मौत की सजा पाए अपराधी के रूप में काटे हैं। राजोआना ने कहा कि मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत उसकी ओर से क्षमा अर्जी दी थी।