उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार एक कीमती और अपरिहार्य अधिकार है और अगर वह देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मामलों में कार्रवाई नहीं करता है, तो यह उसे हासिल विशेष संवैधानिक शक्तियों का ‘उल्लंघन’ करने जैसा होगा। कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने दो दिन पहले कहा था कि उच्चतम न्यायालय को जमानत आवेदनों और निरर्थक जनहित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए, जब लंबित मामलों की संख्या इतनी अधिक है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को खारिज करते हुए सवाल किया, अगर हम अपनी अंतरात्मा की नहीं सुनते, तो हम यहां किसलिये हैं? न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा, उच्चतम न्यायालय के लिए कोई भी मामला छोटा नहीं होता। अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं और राहत नहीं देते हैं, तो हम यहां क्या कर रहे हैं?
पीठ ने कहा, ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान में प्रदत्त एक विशेष और अपरिहार्य अधिकार है। पीठ ने कहा, अगर हम व्यक्ति स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम अनुच्छेद-136 (राहत देने के लिए संविधान में प्रदत्त विशेष शक्तियां) का उल्लंघन करेंगे। उसने कहा कि मामले के तथ्य शीर्ष अदालत को प्रत्येक नागरिक को मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के रक्षक के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने का एक और मौका, एक ‘स्पष्ट मौका’ प्रदान करते हैं। पीठ ने कहा, अगर न्यायालय ऐसा नहीं करेगा तो एक नागरिक की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी। नागरिकों की शिकायतों से जुड़े छोटे, नियमित मामलों में इस अदालत के हस्तक्षेप से न्यायशास्त्रीय और संवैधानिक मुद्दों से संबंधित पहलू उभरकर सामने आते हैं।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता इकराम को राहत देते हुए यह टिप्पणी की। इकराम को विद्युत अधिनियम से जुड़े नौ आपराधिक मामलों में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले की एक अदालत ने दोषी करार दिया था। अदालत ने इकराम को प्रत्येक मामले में दो साल के कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई थी। इकराम लगभग तीन साल से जेल में है। जेल अधिकारियों का कहना है कि उसकी सजा एक साथ के बजाय क्रमिक रूप से चलेगी, जिसकी वजह से उसे जेल में 18 साल गुजारने होंगे। इकराम ने मामले में उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसने उसे राहत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए स्पष्ट किया कि इकराम की सजा एक साथ चलेगी। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय को इस ‘घोर अन्याय’ को रोकने के लिए आगे आना चाहिए था।