उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देशभर में प्रारंभिक स्तर के न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता तय करने के मापदंडों में राष्ट्रीय स्तर पर किसी न किसी तरह की ”एकरूपता” जरूरी है, ताकि पूरे देश में इन न्यायिक अधिकारियों के करियर की धीमी और असमान प्रगति की समस्या को दूर किया जा सके। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि उसका न्यायाधीशों के लिए नामों की सिफारिश करने में उच्च न्यायालयों के अधिकारों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गवई के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची शामिल हैं।
पीठ ने उच्च न्यायिक सेवा (एचजेएस) संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर मंगलवार को सुनवाई शुरू की थी। पीठ ने इस स्थिति पर गौर किया कि “ज्यादातर राज्यों में दीवानी न्यायाधीश (सीजे) के रूप में भर्ती होने वाले न्यायिक अधिकारी अक्सर प्रधान जिला न्यायाधीश (पीडीजे) के पद तक भी नहीं पहुंच पाते, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने की बात तो दूर है। इसका नतीजा यह हुआ है कि कई प्रतिभाशाली युवा वकील दीवानी न्यायाधीश स्तर पर न्यायिक सेवा में शामिल होने से हतोत्साहित हो रहे हैं।” सुनवाई के दूसरे दिन बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि वह वरिष्ठता निर्धारण के लिए कोई एकरूप ढांचा लागू न करे। उन्होंने कहा कि यह मामला उच्च न्यायालयों के विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि संविधान के तहत अधीनस्थ न्यायपालिका के प्रशासन का अधिकार उन्हीं के पास निहित है। उन्होंने कहा, ”उच्च न्यायालय अपने-अपने राज्यों की परिस्थितियों और वास्तविकताओं से पूरी तरह अवगत हैं।
वे वरिष्ठता और पदोन्नति के मामलों से निपटने के लिए सबसे उचित स्थिति में हैं… यह उच्च न्यायालयों को कमजोर करने का समय नहीं, बल्कि उन्हें मजबूत बनाने का समय है।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”उच्च न्यायालयों के बीच कुछ एकरूपता होनी चाहिए… हम नामों की सिफारिश करने के उच्च न्यायालयों के विवेकाधिकार को नहीं छीनेंगे। लेकिन हर उच्च न्यायालय के लिए अलग-अलग नीतियां क्यों होनी चाहिए? हमारा उच्च न्यायालयों के विवेकपूर्ण अधिकारों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि पीठ के निर्देश यदि कोई हों तो ”आपस में वरिष्ठता” के विवादों को हल नहीं करेंगे, बल्कि पूरे देश में न्यायसंगत और समान व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सामान्य सिद्धांत तय करेंगे। न्यायमूर्ति कांत ने स्पष्ट किया, ”व्यक्तिगत वरिष्ठता विवादों पर विचार करने का कोई सवाल ही नहीं है। यह एक व्यापक, मार्गदर्शक ढांचा होगा।” द्विवेदी ने दलील दी कि न्यायमित्र द्वारा प्रस्तुत आंकड़े ”संकीर्ण, अधूरी और पूर्ववर्ती कानूनी स्थितियों पर आधारित” हैं, और इसलिए यह विभिन्न राज्यों में वास्तविक परिस्थितियों को सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं करते।
द्विवेदी ने कहा, “ज्यादातर उच्च न्यायालयों का प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है। न्यायमित्र द्वारा एकत्र की गई जानकारी अधूरी है। मैं इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से अदालत को कोई भी निर्देश जारी करने से रोकने के लिए खड़ा हूं।” उन्होंने कहा कि उनका अनुरोध ”संवैधानिक आधार पर” है। उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि वह अलग-अलग उच्च न्यायालयों को अपने अधिकार क्षेत्र में वरिष्ठता के मुद्दे को निपटाने की अनुमति दे। उन्होंने कहा, ”यदि स्थिति अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है, तो कोई भी समान कोटा या नियम असंतुलन पैदा करेगा… उच्च न्यायालयों को अपनी परिस्थितियों से निपटने दें। यह समस्या सभी न्याय क्षेत्रों में समान रूप से मौजूद नहीं है।” द्विवेदी ने मौजूदा सेवा नियमों में भिन्नता का भी उल्लेख किया और दलील दी कि एक समान कोटा लागू करने का कोई भी प्रयास पदोन्नत और सीधी भर्ती वाले न्यायिक अधिकारियों के बीच संतुलन को बिगाड़ सकता है। सुनवाई अनिर्णायक रही।
देशभर में प्रारंभिक स्तर के न्यायिक अधिकारियों की धीमी और असमान करियर प्रगति पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एचजेएस संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने पर सुनवाई शुरू की थी। पीठ ने 14 अक्टूबर को यह प्रश्न तैयार किया था- ”उच्च न्यायिक सेवाओं के संवर्ग में वरिष्ठता निर्धारित करने के लिए क्या मानदंड होना चाहिए?” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य मुद्दे पर सुनवाई करते समय वह ”अन्य सहायक या संबंधित मुद्दों” पर भी विचार कर सकती है। पीठ की न्यायमित्र के रूप में सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि अधिकांश राज्यों में पदोन्नति ‘योग्यता की तुलना में वरिष्ठता से अधिक प्रेरित’ होती है, जिसका मुख्य कारण वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) का मूल्यांकन करने का तरीका है।
उन्होंने कहा था, ”लगभग सभी की एसीआर ‘अच्छा’ या ‘बहुत अच्छा’ के रूप में चिह्नित होती है, जिसका अर्थ है कि वरिष्ठता ही वास्तविक निर्णायक कारक बन जाती है।” उन्होंने कहा था कि अधिकांश उच्च न्यायालय जिला न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति के लिए तीन गुना अधिक न्यायाधीशों पर विचार करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया था कि यदि 30 नामों पर विचार किया जा रहा है तो उनमें से 15 पदोन्नत न्यायाधीशों के और 15 सीधी भर्ती वाले न्यायाधीशों के होने चाहिए। देशभर के न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता और करियर में प्रगति का मुद्दा 1989 में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ (एआईजेए) द्वारा दायर एक याचिका में उठाया गया था।

