बच्चे को अपने पास रखने के मामले में मां ने भारत, ब्रिटेन की न्यायिक व्यवस्था को धोखा दिया: सुप्रीम कोर्ट

0
5

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक बच्चे को उसको पिता को सौंपने का निर्देश देते हुए कहा कि इस व्यक्ति की पत्नी ने भारत और ब्रिटेन की न्यायिक प्रणाली के साथ जोड़-तोड़ किया जिसका कारण वह ही बता सकती है। न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने महिला के आचरण की निंदा करते हुए कहा कि यह मामला महिला और उसके पति के बीच गहरे तनाव को दर्शाता है, जो भारत में एक साथ रहने और अपने बच्चों के पालन-पोषण के संबंध में दोनों के अलग-अलग इरादों के कारण उत्पन्न हुआ है। पीठ ने कहा कि इस विवाद से न केवल उनके वैवाहिक संबंध खराब हुए हैं, बल्कि उनके दो बच्चों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिनमें से एक बच्चा अपनी मां के साथ ब्रिटेन में रह रहा है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि नवंबर 2010 में विवाह करने वाले दंपत्ति के बीच संबंधों में लंबे समय से अनबन जारी थी और दो बच्चों से मिलने को लेकर विवाद और बढ़ गया। न्यायालय ने कहा, “यह महज अहंकार का टकराव नहीं है, बल्कि प्रथम दृष्टया यह चिंताजनक मानसिकता को दर्शाता है, जिससे अंततः नाबालिग बच्चों के कल्याण पर प्रभाव पड़ा।” पीठ ने महिला के आचरण का उल्लेख करते हुए कहा कि उसने अपने बेटे को भारत में छोड़ते समय पिता को सूचित करने का प्राथमिक कर्तव्य नहीं निभाया। पीठ ने कहा कि यह महिला का कर्तव्य था कि वह ब्रिटेन के उच्च न्यायालय में आवेदन करते समय उसे यह बताए कि लड़का वहां उसके साथ नहीं रहता। पीठ ने कहा, “यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस तरह के आचरण के कारण पिता को ब्रिटेन उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद मास्टर के (लड़के) के साथ ऑनलाइन माध्यम से मुलाकात करने से वंचित रखा गया और अंततः संदेह उत्पन्न होने पर उन्हें (पिता) को (पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष) बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करनी पड़ी।”

पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि महिला कभी अपने बेटे को उसके पिता से मिलने नहीं देना चाहती थी और अदालत के आदेश को लेकर उसके मन में तनिक भी सम्मान नहीं थाा। पीठ ने कहा, “मां ने भारत और ब्रिटेन की न्यायिक प्रणाली के साथ जोड़-तोड़ की जिसका कारण वह खुद ही बेहतर जानती हैं।” व्यक्ति ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसकी पत्नी मई 2021 में उसे बताए बिना या उसकी सहमति लिए बिना दोनों बच्चों के साथ भारत छोड़कर ब्रिटेन चली गई। बाद में, व्यक्ति को पता चला कि उनका नाबालिग बेटा अपने सास-ससुर के साथ भारत में है। इसके बाद उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अपने बच्चों की कथित अवैध अभिरक्षा का मुद्दा उठाया। उच्चतम न्यायालय ने 16 सितंबर को दिए गए अपने फैसले में कहा कि महिला को लंदन की एक कुटुंब अदालत की ओर से तलाक लेने की अनुमति मिली, जबकि पुरुष को जींद की एक कुटुंब अदालत से तलाक की अनुमति मिली। न्यायालय ने कहा, “संक्षेप में, दोनों पक्ष तलाक चाहते हैं, इसके बाद वे अलग-अलग न्यायालयों द्वारा दिए गए आदेशों को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और उन्हें चुनौती देना जारी रखते हैं, जिसके लिए वे कानूनी रूप से हकदार हैं। मध्यस्थता के प्रयास विफल हो गए हैं।” पीठ ने कहा कि लड़के की अंतरिम अभिरक्षा उसके पिता को सौंपने का उच्च न्यायालय का फैसला उचित है।