बुजुर्ग, गंभीर रूप से बीमार कैदियों की रिहाई के लिए नालसा की याचिका पर केंद्र, राज्यों से सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांगा

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की उस याचिका पर सोमवार को केंद्र तथा बिहार एवं उत्तर प्रदेश सहित 18 राज्यों से जवाब मांगा जिसमें 70 वर्ष से अधिक उम्र के या असाध्य रोग से ग्रस्त कैदियों को जमानत पर रिहा करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि इन कैदियों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है जो जमानत से इनकार के खिलाफ शीर्ष अदालत नहीं आए हैं, लेकिन जेलों में भीड़भाड़ को देखते हुए हो सकता है कि यह जेल प्राधिकारियों के लिए संभव नहीं हो। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने नालसा की ओर से पेश वकील रश्मि नंदकुमार की दलीलों पर गौर किया और केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किए। नालसा ने अपनी जनहित याचिका में कहा कि ये बुजुर्ग और असाध्य रोग से ग्रस्त कैदी आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्यों में बंद हैं।

नालसा भारत में एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए की गई है। यह विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का भी आयोजन करता है। इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका को निर्णय के लिए न्यायमूर्ति नाथ के नेतृत्व वाली पीठ के पास भेज दिया था। नंदकुमार ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि असाध्य रोग से ग्रस्त कई व्यक्ति, जिनकी सजा को विभिन्न उच्च न्यायालयों ने बरकरार रखा था, अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने और जमानत या सजा के निलंबन का अनुरोध करने के लिए शीर्ष अदालत में जाने में असमर्थ थे और इस मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। नालसा की याचिका में कहा गया है, ”याचिकाकर्ता इस अदालत से आवश्यक निर्देश जारी करने का आग्रह करता है ताकि वृद्ध कैदियों और असाध्य रोग से ग्रस्त कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सके, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनके परिवार के सदस्य उनकी देखभाल कर सकें और उनके उनके अंतिम दिनों में समाज में फिर से शामिल किया जा सके।

याचिका में कहा गया है कि असाध्य रोग से ग्रस्त और वृद्ध कैदियों को विशेष देखभाल और व्यक्तिगत ध्यान दिये जाने की आवश्यकता होती है लेकिन जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को देखते हुए हो सकता है कि जेल प्राधिकारियों के लिए ऐसा करना संभव नहीं हो। इसमें कहा गया है कि इसलिए, याचिका में शीर्ष अदालत से 70 वर्ष से अधिक आयु के कैदियों और असाध्य रोगों से पीड़ित कैदियों की रिहाई की सुविधा के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है। याचिका में कहा गया है कि ऐसे कैदियों को विशेष चिकित्सा देखभाल और व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता होती है, जो भीड़भाड़ वाली जेलों में अक्सर उपलब्ध नहीं हो पाती। नालसा ने कहा कि 31 दिसंबर, 2022 तक भारत की जेलों में कैदियों की संख्या 131 प्रतिशत थी, जिससे बुनियादी ढांचे पर गंभीर दबाव पड़ा और जेलों के भीतर चिकित्सा देखभाल और सम्मानजनक रहने की स्थिति की गुणवत्ता प्रभावित हुई। याचिका में हाल के कुछ मामलों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें कर्नाटक में कैद 93 वर्षीय एक महिला का मामला भी शामिल है, जिसकी अवस्था को देखते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने हस्तक्षेप किया। इसी प्रकार, असाध्य रोग से ग्रस्त एक विचाराधीन कैदी के लिए उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय से जमानत प्राप्त की गई।