नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भोपाल मेडिकल कॉलेज से इंटर्नशिप के दौरान विदेशों से मेडिकल में स्नातक करने वालों को मानदेय नहीं दिए जाने का आरोप लगाने वाली याचिका पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने एमबीबीएस आकाश उदयकुमार और अन्य की अधिवक्ता तन्वी दुबे की दलीलों पर गौर किया। अधिवक्ता ने दलील दी कि मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित ‘महावीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ में ‘इंटर्नशिप’ कर रहे ऐसे छात्रों को मानदेय नहीं दिया जाता है।
पीठ ने मेडिकल कॉलेज को नोटिस जारी किया और इसकी सुनवाई जुलाई में तय की। याचिका में चिंता जताई गई कि मेडिकल में विदेश से स्नातक करने वाले छात्रों को मानदेय नहीं दिया जाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। इसमें कहा गया है कि मेडिकल में विदेश से स्नातक करने वाले छात्र और भारत से स्नातक करने वाले छात्रों द्वारा किए जाने वाले कार्य के घंटे समान हैं, फिर भी विदेशी डिग्री धारकों को कोई मानदेय नहीं दिया जाता है। दुबे ने कहा, ”जब वे अपने देश लौटते हैं, तो उन्हें मानदेय नहीं मिलने जैसी समस्याएं होती हैं। मानदेय को वे अपने द्वारा किए गए काम के बदले अपना अधिकार बताते हैं।” उन्होंने कहा कि इन छात्रों पर पहले से ही भारी शैक्षणिक ऋण है और मेडिकल ‘इंटर्नशिप’ की अनिवार्यता के दौरान उन्हें अपने बुनियादी खर्च भी उठाने हैं। याचिका में कहा गया है, ”इंटर्नशिप कर रहे अन्य सभी चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से छात्रवृत्ति दी जा रही है, इसलिए कॉलेज की ओर से छात्रवृत्ति नहीं दिए जाने का कृत्य मनमाना और अनुचित है।