उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह उच्च न्यायपालिका के कैडर में वरिष्ठता निर्धारित करने वाले कारकों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर 28 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगा। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि न्यायालय देश भर में निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के सामने आने वाले करियर में ठहराव से संबंधित अन्य सभी मुद्दों पर भी विचार करेगा, जिसमें मामले को एक वृहद पीठ को भेजना भी शामिल है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने न्यायिक अधिकारियों के करियर में प्रगति के मुद्दे पर विभिन्न पक्षों के नोडल वकील नियुक्त किए और कहा कि सभी लिखित दलीलें 27 अक्टूबर तक दाखिल की जाएंगी।
पांच न्यायाधीशों की पीठ ने न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों, वेतनमान और करियर में प्रगति से संबंधित मुद्दों पर अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा दायर एक याचिका सहित कई याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया। उच्चतम न्यायालय ने देश भर की अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के करियर में ठहराव से जुड़े मुद्दों को सात अक्टूबर को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया। इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर के पदों पर शामिल होने वालों के लिए उपलब्ध सीमित पदोन्नति के अवसरों पर ध्यान देने के लिए एक व्यापक समाधान की आवश्यकता है।
न्यायालय ने कहा था कि इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय द्वारा पहले जारी किए गए नोटिसों के जवाब में कई उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए थे। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा था, ”कुछ उच्च न्यायालयों का मानना है कि मौजूदा स्थिति के कारण, जो न्यायाधीश शुरुआत में सिविल जज, जूनियर डिवीजन के रूप में सेवा में प्रवेश करते हैं, वे जिला न्यायाधीश के पद तक पहुंचने की स्थिति में नहीं होते हैं।” न्यायालय ने कई राज्यों में व्याप्त ‘विषम स्थिति’ का संज्ञान लिया, जहां न्यायिक अधिकारी, जो प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (जेएमएफसी) के रूप में अपना करियर शुरू करते हैं, अक्सर प्रधान जिला न्यायाधीश (पीडीजे) के पद तक पहुंचे बिना ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं, उच्च न्यायालय में पदोन्नति की तो बात ही छोड़ दें। हालांकि, विपरीत दृष्टिकोण रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इस तरह के कदम से जिला न्यायाधीशों के रूप में सीधी भर्ती के इच्छुक मेधावी उम्मीदवारों को अनुचित रूप से नुकसान होगा।