संसद के पास खनिज संपदाओं पर कर लगाने की शक्ति नहीं है, राज्यों के पास है: सुप्रीम कोर्ट

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उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से कहा कि संविधान में खनिज संपदा अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति संसद को नहीं बल्कि राज्यों को दी गई है। न्यायालय ने साथ ही यह भी कहा कि ऐसे अधिकार को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस बात पर विचार कर रही है कि क्या खनन पट्टों पर एकत्रित रॉयल्टी को कर के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि 1989 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने माना था। पीठ ने कहा कि संसद केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ सीमाएं तय कर सकती है कि खनिज विकास का काम अवरुद्ध न हो। पीठ में न्यायमूर्ति षिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 की प्रविष्टि 50 के संबंध में संसद प्रतिबंध लगा सकती है लेकिन वह यह नहीं कह सकती कि उसके पास कर लगाने की शक्ति है और राज्यों के पास नहीं है। संविधान की 7वीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच शक्तियों और कार्यों के आवंटन को निर्दिष्ट करती है। प्रधान न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, कर लगाने का अधिकार संसद को नहीं दिया गया है, यह केवल राज्यों को दिया गया है। लेकिन खनिज संपदा के हित में संसद कह सकती है कि आप इस तरह से कर नहीं लगा सकते हैं, या उदाहरण के लिए कर 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए क्योंकि यदि आप एक निश्चित तरीके से कर लगाते हैं, तो यह खनिज के विकास में बाधा डाल सकता है।

मामले की सुनवाई बेनतीजा रही और पांच मार्च को फिर से शुरू होगी। उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी को इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी कि क्या खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत निकाले गए खनिजों पर देय रॉयल्टी कर है या नहीं। उत्खनित खनिजों पर देनदारी के विवाद पर असर डालने वाला यह मुद्दा 1989 में ‘इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड बनाम तमिलनाडु सरकार’ मामले में शीर्ष अदालत की सात-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के बाद उठा था जिसमें यह माना गया था कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है। हालांकि 2004 में ‘पश्चिम बंगाल सरकार बनाम केशवराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ मामले में शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 1989 के फैसले में एक मुद्रण संबंधी त्रुटि थी और कहा गया कि रॉयल्टी एक कर नहीं है। इसके बाद विवाद को नौ-न्यायाधीशों वाली वृहद पीठ के सुपुर्द कर दिया गया था। उच्चतम न्यायालय विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाए गए विरोधाभासी फैसलों से उत्पन्न खनन कंपनियों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) और राज्य सरकारों द्वारा दायर 86 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है।

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