राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है लेकिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच जुबानी जंग शुरू होने के साथ विपक्षी दलों में कड़वाहट बढ़ती दिख रही है। इन चुनावों में विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की हार अपेक्षित थी, लेकिन कई लोगों को तब हैरानी हुई जब विपक्ष के बीच राजनीतिक मतभेद उजागर हो गया। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों मुख्य विपक्षी दलों के वाकयुद्ध में उतरने और टीएमसी के उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी बनाने के फैसले से 2024 के आम चुनाव की लिए तैयारी कर रहे विपक्ष के मनोबल पर असर पड़ा है और उनकी राजनीतिक संभावना को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है।
कांग्रेस और टीएमसी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का साझा उम्मीदवार तय करने के लिए श्रेय लेने की होड़ में थी लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान दोनों के मतभेद उजागर हो गए। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्गरेट आल्वा को विपक्ष ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के जगदीप धनखड़ के खिलाफ उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में उतारा, लेकिन ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी ने घोषणा की कि पार्टी चुनाव से दूर रहेगी क्योंकि उम्मीदवार पर फैसला करने से पहले कोई उचित परामर्श नहीं हुआ। आल्वा की पहली प्रतिक्रिया कठोर थी , जिसमें उन्होंने कहा कि यह अहंकार या क्रोध का समय नहीं है, बल्कि साहस, नेतृत्व और एकजुटता का समय है। हालांकि, उन्हें उम्मीद थी कि बनर्जी साथ देंगी और उनका समर्थन करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
हार के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सार्वजनिक टिप्पणी में टीएमसी को लेकर नाराजगी प्रकट की। रमेश ने ट्वीट कर कहा कि मार्गरेट आल्वा ने एक उत्साही अभियान चलाया और यह बहुत बुरा है कि टीएमसी ने उनका समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी पहली महिला उपराष्ट्रपति के लिए इंतजार करना होगा। आल्वा ने चुनाव में उनका समर्थन नहीं करने को लेकर तृणमूल कांग्रेस पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन करके, कुछ दलों और उनके नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।
आल्वा ने कहा कि यह चुनाव विपक्ष के लिए साथ मिलकर काम करने, अतीत को भुलाने और विश्वास बहाल करने का अवसर था। आल्वा ने कहा, ”चुनाव संपन्न हो गया। हमारे संविधान की रक्षा करने, लोकतंत्र को मजबूत बनाने और संसद की गरिमा बहाल करने के लिए संघर्ष जारी रहेगा। वहीं, टीएमसी नेता साकेत गोखले ने एक टीवी चैनल पर कहा कि कांग्रेस टीएमसी की सहयोगी नहीं है और वे समान विचारधारा वाली पार्टियां थीं। उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद कहा, ”कांग्रेस ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पश्चिम बंगाल में टीएमसी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिस तरह से विपक्षी उम्मीदवार का फैसला किया गया था, उसके कारण हमने दूर रहने का फैसला किया।
टीएमसी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने रविवार को धनखड़ को उनकी जीत पर बधाई दी और कहा, आशा और कामना है तथा आग्रह है कि आप उन सभी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे, जिन्होंने आपको वोट दिया और समर्थन किया और जो अनुपस्थित रहे या मतदान या समर्थन नहीं किया। जय हिंद! विपक्षी दलों में मतभेद ही नहीं उजागर हुए बल्कि इन दलों को चुनावों में ‘क्रॉस वोटिंग’ का भी सामना करना पड़ा। राष्ट्रपति चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने के बजाय राजग उम्मीदवार का साथ दिया। असम, झारखंड और मध्य प्रदेश विधानसभाओं में बड़ी संख्या में विपक्षी दलों के विधायकों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। उपराष्ट्रपति चुनाव में, शिशिर अधिकारी और उनके बेटे दिब्येंदु अधिकारी ने अपनी पार्टी टीएमसी के मतदान से दूर रहने का फैसला करने के बावजूद मतदान किया।
राजग उम्मीदवार मुर्मू और धनखड़, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में आराम से जीत गए और विपक्ष को अपेक्षित संख्या से भी कम समर्थन मिला। राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि चुनावों के परिणाम पहले से ही स्पष्ट थे, लेकिन विपक्षी दलों के बीच एकजुटता की कमी ने सत्तारूढ़ राजग को चुनौती देने वाली पार्टियों के लिए 2024 की राह को और कठिन बना दिया है। किदवई ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”विपक्षी दलों में दरार उजागर हो गई है। इसने विपक्ष के लिए 2024 को लेकर बहुत सारी समस्याएं पैदा कर दी हैं क्योंकि इसने दो प्रमुख विपक्षी दलों के बीच संवाद की कमी को उजागर किया है तथा दोनों दलों के बीच एक-दूसरे के नेताओं को अपने पाले में करने का दौर फिर से शुरू होने की खबर है।
उन्होंने कहा, इस स्थिति में पहुंचने के लिए दोनों दल जिम्मेदार हैं। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी उसकी सबसे बड़ी ताकत है और इसी तरह टीएमसी को यह समझने की जरूरत है कि कांग्रेस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी हुई है। इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए, राजनीतिक टिप्पणीकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर संजय के पांडे ने कहा कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में जो हुआ वह विपक्षी दलों के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों की आलोचना की सार्वजनिक टिप्पणियों ने कोई मदद नहीं की और असल में मतभेदों को बढ़ाया। पांडे ने पीटीआई-भाषा से कहा ,उनकी एकजुटता से परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन 2024 के चुनावों के लिए एक संदेश जाता। उन्होंने कहा, ”इससे पता चलता है कि उनमें से कोई भी एकता के बारे में चिंतित नहीं है, बल्कि केवल उन्हें अपने हित से मतलब है।