दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर शनिवार को लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया और दावा किया कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की स्थायी समिति में एक सदस्य का चुनाव ”गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक” था। आतिशी ने यहां संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) शुक्रवार को हुए चुनाव के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी। भाजपा ने एमसीडी की 18 सदस्यीय स्थायी समिति की एकमात्र रिक्त सीट पर निर्विरोध जीत हासिल की क्योंकि सत्तारूढ़ ‘आप’ और कांग्रेस के पार्षदों ने चुनाव का बहिष्कार किया था।
आतिशी ने भाजपा को एमसीडी को भंग कराने और यह देखने के लिए चुनावों में ‘आप’ का मुकाबला करने की चुनौती दी कि लोग नगर निगम में किस पार्टी को चाहते हैं। उन्होंने कहा, “देश संविधान और कानून से चलता है, गुंडागर्दी से नहीं। इसलिए भाजपा को लोकतंत्र की हत्या बंद करनी चाहिए।” आतिशी ने कहा कि स्थायी समिति के सदस्य का चुनाव दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम, 1957 का उल्लंघन कर किया गया। नियमों के अनुसार, केवल महापौर ही एमसीडी की स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव की तारीख और स्थान तय कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि केवल महापौर ही चुनाव के लिए एमसीडी पार्षदों की बैठक की अध्यक्षता कर सकते हैं। उन्होंने दावा किया, “लोकतंत्र, संविधान तथा कानून की धज्जियां उड़ाते हुए और उपराज्यपाल के निर्देश पर महापौर के बजाय एमसीडी के अतिरिक्त आयुक्त को पीठासीन अधिकारी बनाकर स्थायी समिति के सदस्य का चुनाव कराया गया।
आतिशी ने आरोप लगाया कि भाजपा को संविधान या नियम-कायदों की कोई परवाह नहीं है। उन्होंने कहा, “उपराज्पाल या अधिकारियों के पास सदन की बैठक बुलाने का अधिकार नहीं है फिर भी उन्होंने आदेश दिया और आयुक्त ने इसका पालन कर चुनाव के लिए निगम की बैठक बुलाई। निर्वाचित महापौर की जगह भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का एक अधिकारी पीठासीन अधिकारी बन गया।” भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आतिशी के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की टिप्पणी ‘पूरी तरह से राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित’ है और उनका उद्देश्य ‘भ्रम’ फैलाना था। सचदेवा ने कहा, “आतिशी को पता होना चाहिए कि डीएमसी अधिनियम की धारा 45 के तहत स्थायी समिति का गठन अनिवार्य है। धारा 487 के तहत उपराज्यपाल और नगर आयुक्त को विशेष परिस्थितियों में निगम की बैठक बुलाने का अधिकार है और वे बैठक के लिए पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आतिशी को यह भी बताना चाहिए कि डीएमसी अधिनियम के अनुसार ‘आप’ अपने कार्यकाल के तीसरे वर्ष में एमसीडी में दलित महापौर की नियुक्ति क्यों नहीं होने दे रही है। सचदेवा ने कहा, “वह (आतिशी) स्थायी समिति के चुनाव में ‘आप’ की हार और पार्टी के पार्षदों के बीच एकता की कमी से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही हैं।” भाजपा नेता ने दावा किया कि ‘आप’ स्थायी समिति के चुनाव भी नहीं कराना चाहती थी। सचदेवा ने दावा किया कि चुनाव केवल पांच अगस्त को पारित उच्चतम न्यायालय के आदेश और दिल्ली उच्च न्यायालय के दबाव के कारण हुए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि एमसीडी ने हलफनामे में उच्च न्यायालय को यह आश्वासन क्यों दिया था कि स्थायी समिति के गठन की प्रक्रिया सितंबर के अंतिम सप्ताह तक पूरी हो जाएगी। नगर निगम आयुक्त और महापौर ने स्थायी समिति सदस्य के चुनाव के लिए 26 सितंबर को बैठक बुलाई थी। सचदेवा ने कहा कि हालांकि ‘आप’ नेताओं के दबाव में महापौर ने बैठक को पांच अक्टूबर तक के लिए टाल दिया।