दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अतिक्रमण के मामले में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के अधिकारियों के नरम रुख अपनाने की वजह से लोगों को सरकारी भूमि पर कब्जा करने का प्रोत्साहन और बढ़ावा मिला। न्यायालय ने वसंत विहार इलाके में घरों के बाहर बने रैंप को हटाने में अधिकारियों की विफलता परा नाराजगी जताते हुए यह टिप्पणी की है।
जस्टिस नज्मी वजीरी ने इसके साथ ही इस मसले पर एसडीएमसी के जिम्मेदार अधिकारियों को अगली सुनवाई पर पेश होकर जवाब देने को कहा है।
उन्होंने कहा है कि अदालत के आदेश के बावजूद अधिकारियों द्वारा कार्रवाई नहीं की गई और यह पूरी तरह से कर्तव्य की अवहेलना है। न्यायालय ने कहा है कि आदेश पारित किए हुए ढाई माह बीत चुका है और एसडीएमसी ने इलाके में चिन्हित किए गए रैंपों को न तो ध्वस्त किया है और न ही हटाया है। न्यायालय ने कहा है कि अधिकारियों की निष्क्रियता ने निगम के अपने फुटपाथों को व्यापक नुकसान और आम जनता को असुविधा को प्रोत्साहित किया है।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि नगर निगम के नरम रूख से पता चलता है कि इसने लोगों को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे शारीरिक रूप से अक्षम, विकलांग, बुजुर्गों और टहलने के इच्छुक बच्चों को बहुत परेशानी हुई। उच्च न्यायालय ने भावरीन कंधारी की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आदित्य एन प्रसाद ने न्यायालय को बतया कि दक्षिण दिल्ली के वसंत विहार में सैकड़ों पेड़ों के आसपास के कंक्रीट से भर दिया गया है। उन्होंने पेड़ों के आसपास से कंक्रीट हटाने और उनके संरक्षण की मांग की है।
इस मामले में न्यायालय ने पहले एसडीएमसी को वसंत विहार इलाके में सामाजिक विकलांगता ऑडिट को उचित तरीके से करने के लिए कहा था। इस मामले में नगर निगम के अधिकारी व्हीलचेयर पर चले थे, लेकिन स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि सहायता लेकर। इसके बाद न्यायालय ने आडिट सही से करने का आदेश दिया था। इसके साथ ही पूछा था कि कई घरों के बाहर बने रैंप एसडीएमसी के मानकों के अनुरूप क्यों नहीं है और अधिकारियों से उन्हें हटाने के लिए कहा ताकि व्हीलचेयर या वॉकर पर व्यक्तियों के लिए कोई बाधा न हो।
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