सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के तहत ईडी के विभिन्न अधिकारों को रखा बरकरार

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उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बुधवार को धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारों को बरकरार रखा। केंद्रीय एजेंसी के लिए न्यायालय का यह फैसला काफी अहम है, क्योंकि उस पर सरकार के राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए अपने अधिकार का दुरुपयोग करने के अकसर आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम समेत 240 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने पीएमएलए के प्रावधानों को चुनौती दी है। न्यायालय ने यह देखते हुए कि यह दुनियाभर में एक सामान्य अनुभव है कि धनशोधन एक वित्तीय प्रणाली के अच्छे कामकाज के लिए ”खतरा” हो सकता है, पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि यह एक ”साधारण अपराध” नहीं है।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2002 अधिनियम के तहत अधिकारी ”पुलिस अधिकारी जैसे नहीं हैं और प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) से नहीं जोड़ा जा सकता। न्यायमूर्ति खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रवि कुमार की पीठ ने कहा कि संबंधित व्यक्ति को हर मामले में एक ईसीआईआर की प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं है और किसी आरोपी को गिरफ्तार करते समय ईडी द्वारा इसके आधार का खुलासा किया जाना ही पर्याप्त है। मामले में याचिकाकर्ताओं ने ईसीआईआर की सामग्री का खुलासा नहीं करने संबंधी ईडी के अधिकार को चुनौती दी थी और कहा है कि यह आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

पीठ ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 द्वारा परिकल्पित विशेष तंत्र के मद्देनजर सीआरपीसी के तहत किसी ईसीआईआर को एफआईआर से नहीं जोड़ा जा सकता है। उसने कहा, ईसीआईआर ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है और यह तथ्य कि संबंधित अपराध में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, अपराध से अर्जित संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क करने के वास्ते दीवानी कार्रवाई शुरू करने के लिए धारा 48 में संदर्भित प्राधिकारों के आड़े नहीं आता। न्यायालय पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाले व्यक्तियों और अन्य संस्थाओं द्वारा दायर 200 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

अदालत ने कहा कि पीएमएलए की धारा-45 संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है और यह उचित है और मनमानीपूर्ण नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने आरोपी के लिए कानून द्वारा निर्धारित कड़ी जमानत शर्तों को भी चुनौती दी है। पीठ ने 545 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, 2002 अधिनियम की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती भी खारिज की जाती है। धारा 19 में कड़े सुरक्षा उपाय दिए गए हैं। प्रावधान में कुछ भी मनमानी के दायरे में नहीं आता। न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा-5 के तहत धनशोधन में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है। पीठ ने कहा, ”यह व्यक्ति के हितों को सुरक्षित करने के लिए एक संतुलित व्यवस्था प्रदान करती है और यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध से अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीकों से निपटा जाए।

इसने कहा कि इस सवाल पर कि क्या पीएमएलए में कुछ संशोधनों को संसद द्वारा वित्त अधिनियम के माध्यम से अधिनियमित नहीं किया जा सकता है, इसकी जांच नहीं की गई है। पीठ ने कहा कि पीएमएलए की धारा 24 का अधिनियम द्वारा हासिल किए जाने वाले उद्देश्यों के साथ उचित संबंध है और इसे असंवैधानिक नहीं माना जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 162 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे गए सभी सवालों का सच्चाई से जवाब देने के लिए बाध्य है। पीठ ने कहा कि 2002 के अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए बयान संविधान के अनुच्छेद 20 (3) या अनुच्छेद 21 से प्रभावित नहीं हैं। अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है।

न्यायालय ने कहा कि धन शोधन रोधक अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण में रिक्तियों के संबंध में कार्यपालिका को सुधारात्मक उपाय करने की जरूरत है। पीठ ने कहा, ”याचिकाकर्ता द्वारा अपीलीय न्यायाधिकरण में रिक्तियों के कारण अन्याय पर गंभीर चिंता व्यक्त करना उचित है। हम इस संबंध में सुधारात्मक उपाय करने के लिए कार्यपालिका को प्रभावित करना जरूरी समझते हैं। इसने कहा कि अधिनियम की धारा 63, जो झूठी सूचना या सूचना देने में विफलता के संबंध में सजा से संबंधित है, किसी भी तरह से मनमानीपूर्ण नहीं है। अदालत ने कहा कि उसे धारा 44 को चुनौती देने में कोई आधार नहीं दिखता है, जो विशेष अदालतों द्वारा विचारणीय अपराधों से संबंधित है, जो मनमाना या असंवैधानिक है। कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, उनके बेटे एवं सांसद कार्ति चिदंबरम, शिवसेना के नेता संजय राउत, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे एवं तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी और दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन सहित कई शीर्ष विपक्षी नेता कथित धनशोधन के लिए ईडी के निशाने पर हैं।

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