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स्वच्छ हवा बुनियादी अधिकार, नागरिकों को अपराधी की तरह क्यों देखती है सरकार : राहुल

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने देश में वायु प्रदूषण की गंभीर होती स्थिति को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि स्वच्छ हवा हर नागरिक का बुनियादी अधिकार है लेकिन जब नागरिक साफ हवा के हक की मांग करते हैं तो सरकार उनके साथ अपराधी की तरह पेश आती है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पोस्ट में सोमवार को कहा कि संविधान ने हर नागरिक को शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार दिया है और उनके इस अधिकार की सुरक्षा सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने लिखा स्वच्छ हवा का अधिकार एक बुनियादी मानव अधिकार है।

शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार हमारे संविधान द्वारा दी गयी गारंटी का हिस्सा है। जब नागरिक स्वच्छ हवा में जीने की अपनी बुनियादी मांग के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं तो उनके साथ अपराधी की तरह व्यवहार क्यों किया जा रहा है। गांधी ने आरोप लगाया कि वायु प्रदूषण से करोड़ों भारतीय प्रभावित हो रहे हैं, बच्चों और देश के भविष्य को नुकसान पहुंच रहा है लेकिन ‘वोट चोरी से सत्ता में आई सरकार’ इस गंभीर संकट को सुलझाने के बजाय चुप बैठी है और और इसका विरोध कर रहे नागरिकों पर कार्रवाई कर रही है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह जनता की आवाज़ दबाने के बजाय वायु प्रदूषण के संकट को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए और लोगों के जीवन तथा स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तुरंत सकारात्मक कार्रवाई करे।

बिहार में दो दशक के अन्याय के अंत के लिए महागठबंधन सरकार बनाएं : खरगे

बिहार विधानसभा के लिए दूसरे और अंतिम चरण के मतदान से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मतदाताओं से अपील करते हुए कहा है कि राज्य में 20 साल जारी अराजकता को खत्म करने और सबको न्याय दिलाने के वास्ते वे महागठबंधन के पक्ष में मतदान करें। खरगे ने कहा कि बिहार के लोग दो दशक से अन्याय सह रहे हैं और मतदाता इसका अंत करने के लिए महाठबंधन के पक्ष में वोट करें। उन्होंने वादा करते हुए कहा कि महागठबंधन सरकार बिहार के लोगों को दो दशकों की लाचार और भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्ति दिलाएगी तथा समाज के हर वर्ग के विकास के लिए काम करेगी।

खरगे ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, अब पलायन रुकेगा, युवाओं के भवष्यि से अंधेरा छंटेगा, हर घर नौकरी से उनका कल संवरेगा। अन्याय का करेंगे अंत, सामाजिक न्याय से बदलेंगे बिहार। हमारा वादा है-महागठबंधन दलित, महादलित, आदिवासी, पिछड़े, अति-पिछड़े, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। महिलाओं, किसानों और युवाओं के आर्थिक उत्थान के लिए ठोस योजनाएं लागू की जाएंगी। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता बदलाव के लिए तैयार है और महागठबंधन राज्य का गौरव लौटाने का संकल्प लेकर मैदान में है, इसलिए मतदाता विकास, समानता और न्याय के लिए महागठबंधन को वोट दें।

दिल्ली में रिठाला मेट्रो स्टेशन के पास भीषण आग से सैकड़ों झुग्गियां खाक, एक की मौत

दिल्ली के रोहिणी में रिठाला मेट्रो स्टेशन के पास लगभग 500 झुग्गियों में भीषण आग लगने से एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य व्यक्ति झुलस गया। दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) ने यह जानकारी दी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि शुक्रवार देर शाम लगी आग पर पर्याप्त टीम तैनात करके पूरी तरह काबू पा लिया गया है और घटना से प्रभावित लोगों को राहत प्रदान की जा रही है। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया है और राहत एवं पुनर्वास कार्य तेजी से जारी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रभावित लोगों को भोजन और पानी उपलब्ध कराया गया है तथा उनके लिए अस्थायी आश्रय स्थल बनाए गए हैं। पुलिस के अनुसार, ऐसा बताया जा रहा है कि शुक्रवार रात कई एलपीजी सिलेंडर फट गए, जिससे आग और भड़क गई तथा निवासियों में दहशत फैल गई।

दमकल विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इलाके से धुएं का घना गुबार उठता देखा गया तथा स्थानीय लोग अपना सामान बचाने और सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए संघर्ष करते नजर आए। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक जानकारी के अनुसार 400 से 500 झुग्गियां जलकर खाक हो गई हैं। अग्निशमन अधिकारियों के अनुसार, उन्हें रात 10 बजकर 56 मिनट पर आग लगने की सूचना मिली जिसके बाद कई दमकल गाड़ियां और अग्निशमन रोबोट घटनास्थल पर भेजे गए। पुलिस ने क्षेत्र की घेराबंदी कर दी तथा आग को और अधिक फैलने से रोकने के लिए अतिरिक्त दमकल गाड़ियां तैयार रखी गईं। डीएफएस के एक अधिकारी ने बताया कि आग पर सुबह तक काबू पा लिया गया।

उन्होंने कहा कि मुन्ना नाम के व्यक्ति की आग में जलकर मौत हो गई तथा राजेश नाम का एक अन्य व्यक्ति घायल हो गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार प्रभावित परिवारों को हरसंभव सहायता प्रदान कर रही है। उन्होंने कहा, “प्रभावित लोगों के लिए भोजन और पेयजल की व्यवस्था की गई है। अस्थायी आश्रय स्थल स्थापित किए जा रहे हैं, जबकि रिठाला सामुदायिक केंद्र में स्थायी राहत केंद्र चालू है।” मुख्यमंत्री ने कहा, “हफ्ते में सातों दिन 24 घंटे सेवा देने वाली कैट्स एम्बुलेंस और मेडिकल टीम तैनात की गई हैं। एमसीडी द्वारा मलबा हटाने का काम और राजस्व विभाग द्वारा प्रभावित परिवारों का सत्यापन जारी है।

प्रधानमंत्री पद की गरिमा ‘कट्टा’ जैसे शब्दों के प्रयोग से गिर रही है, बिहार में बोलीं प्रियंका गांधी

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने शनिवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘कट्टा’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर अपने पद की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं। बिहार के कटिहार में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि कांग्रेस आज वही लड़ाई लड़ रही है जो कभी महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लड़ी थी। उन्होंने कहा, “एक तरफ प्रधानमंत्री ‘वंदे मातरम’ का गुणगान करते हैं, जो अहिंसा और एकता का प्रतीक है, और दूसरी तरफ ‘कट्टा’ (देसी पिस्तौल) जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह उनके पद की गरिमा के अनुरूप है?

कांग्रेस महासचिव ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार युवाओं को रोजगार देने में विफल रही है और उसने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को “अपने दो कॉरपोरेट मित्रों” को सौंप दिया है। प्रियंका गांधी ने कहा, “भाजपा को लगता है कि वह महिलाओं को 10,000 रुपए देकर उनका वोट खरीद लेगी। लेकिन बिहार की महिलाएं अब जागरूक हैं और अपना निर्णय सोच-समझकर लेंगी।” उन्होंने कहा कि बिहार के मतदाता इस बार ऐसे शासन को चुनेंगे जो जनता के हितों और संवेदनाओं का सम्मान करे।

संसद का शीतकालीन सत्र एक से 19 दिसंबर तक : रीजीजू

संसद का शीतकालीन सत्र एक से 19 दिसंबर तक चलेगा। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने शनिवार को यह जानकारी दी। रीजीजू ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने संसद का शीतकालीन सत्र एक दिसंबर 2025 से 19 दिसंबर, 2025 तक (संसदीय कार्य की अनिवार्यताओं के अधीन) आयोजित करने के सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।” उन्होंने कहा, “मैं एक रचनात्मक और सार्थक सत्र की आशा करता हूं जो हमारे लोकतंत्र को मजबूत करेगा और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा।

मजदूरों, इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए रोजगार का नया दरवाजा खोलेगी भागलपुर परियोजना

पिछले पांच दशकों में बिहार की कहानी अधूरी संभावनाओं की रही है। यहां की युवा आबादी रोजगार की तलाश में पलायन करती रही, उद्योग ठहरते गए और बिजली की कमी ने विकास की रफ्तार को थाम दिया। मगर हर परिवर्तन एक चिंगारी से शुरू होता है और बिहार के लिए वह चिंगारी अब भागलपुर पावर प्रोजेक्ट हो सकता है।अदाणी पावर द्वारा विकसित किया जा रहा 2,400 मेगावॉट का थर्मल पावर प्लांट, ₹30,000 करोड़ के निवेश के साथ, सिर्फ एक औद्योगिक परियोजना नहीं है यह बिहार की नई आर्थिक पहचान का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि पारदर्शिता, सुशासन और प्रतिबद्धता के साथ, निजी निवेश भी अब पूर्वी भारत की धरती पर मजबूती से कदम रख सकता है।जब बिहार स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड ने इस परियोजना की परिकल्पना 2012 में की थी, तब बहुतों को यकीन नहीं था कि यह कभी हकीकत बनेगी। वर्षों की देरी के बाद, सरकार ने 2024 में इसे ई-नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से पुनर्जीवित किया।

अदाणी समूह ने प्रतिस्पर्धी दर ₹6.075 प्रति यूनिट की पेशकश के साथ यह परियोजना हासिल की, जो देश के अन्य समान प्रोजेक्ट्स की तुलना में कम है। सबसे महत्वपूर्ण बात इसके लिए कोई नई भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ। सरकारी स्वामित्व वाली भूमि को लीज़ पर देकर जनहित और पारदर्शिता दोनों सुनिश्चित किए गए।विशेषज्ञों के मुताबिक, इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में लगाए गए हर ₹1 करोड़ पर 200 से 250 मैन-इयर्स का रोजगार सृजित होता है। इस हिसाब से यह प्रोजेक्ट अकेले लाखों मानव-दिवसों का रोज़गार अवसर पैदा करेगा। यह स्थानीय मजदूरों, इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए रोजगार का नया दरवाजा खोलेगा। इस परियोजना से बिहार की औद्योगिक स्थिति में भी बड़ा बदलाव आने की संभावना है। बिजली की स्थिर आपूर्ति से राज्य में विनिर्माण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, फूड प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल, लॉजिस्टिक्स और छोटे उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। ऊर्जा ही वह आधार है जो उद्योगों को गति देती है और आर्थिक विकास का इंजन बनती है। अदाणी का भागलपुर प्रोजेक्ट इसी शक्ति का प्रतीक है—जहां निवेश केवल उत्पादन नहीं, बल्कि विकास और विश्वास दोनों का माध्यम बनता है।

इस परियोजना का समय भी अत्यंत अहम है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, अगले दशक में बिहार की बिजली मांग लगभग दोगुनी होने जा रही है। अगर नए उत्पादन संयंत्र स्थापित नहीं किए गए, तो राज्य एक बार फिर ऊर्जा संकट में फंस सकता है। भागलपुर पावर प्रोजेक्ट इस कमी को पूरा करेगा और औद्योगिक विकास को नई गति देगा।परियोजना का प्रभाव केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं रहेगा। इतनी बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट स्थानीय अर्थव्यवस्था में नई जान डालेगी। निर्माण सामग्री, लॉजिस्टिक्स, परिवहन, रखरखाव और सेवा क्षेत्रों में हजारों प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे। स्थानीय युवाओं के लिए यह अवसर उनके अपने घर में रोजगार का नया द्वार खोलेगा।सबसे गहरा असर मानसिकता पर होगा। दशकों से बिहार को एक ऐसे राज्य के रूप में देखा जाता रहा है, जहां से लोग काम की तलाश में बाहर जाते हैं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है भागलपुर प्रोजेक्ट उस सोच को उलटने वाला प्रतीक बन सकता है। यह संदेश देता है कि अब “काम बिहार में मिलेगा, बिहार के लिए मिलेगा।

अगर राज्य इसी राह पर आगे बढ़ता रहा पारदर्शी नीतियों और विश्वसनीय निवेशकों का स्वागत करता रहा तो आने वाले वर्षों में बिहार अपनी आर्थिक भूगोल को दोबारा लिख सकता है। भागलपुर सिर्फ एक पावर प्रोजेक्ट नहीं है, यह एक नई सुबह की शुरुआत है उस बिहार की, जो अब अपना श्रम नहीं, अपनी शक्ति निर्यात करेगा।आंकड़े बताते हैं कि बिहार की प्रति व्यक्ति जीडीपी केवल 776 अमेरिकी डॉलर है, जबकि बिजली की प्रति व्यक्ति खपत मात्र 317 किलोवाट प्रति घंटा है, जो देश के प्रमुख राज्यों में सबसे कम है। तुलना करें तो गुजरात की प्रति व्यक्ति बिजली खपत 1,980 किलोवाट प्रति घंटा और प्रति व्यक्ति जीडीपी 3,917 अमेरिकी डॉलर है। स्पष्ट है कि जहां बिजली है, वहां समृद्धि है। जहां बिजली की स्थायी उपलब्धता होती है, वहां उद्योग बढ़ते हैं, रोजगार बनते हैं और आय बढ़ती है। जहां बिजली नहीं, वहां युवाओं को पलायन करना पड़ता है। आज बिहार के लगभग 3.4 करोड़ श्रमिक रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं।

महत्वपूर्ण यह है कि इस परियोजना के लिए किसी नई भूमि हस्तांतरण की आवश्यकता नहीं पड़ी। भूमि पहले से ही राज्य सरकार के स्वामित्व में है और इसे बिहार इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन पॉलिसी 2025 के तहत नाममात्र किराए पर लीज़ पर दिया गया है। परियोजना की अवधि पूरी होने के बाद यह भूमि स्वतः राज्य सरकार को लौट जाएगी। यह प्रक्रिया दिखाती है कि बिहार अब निवेश आकर्षित करने के लिए पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी मॉडल अपना रहा है, जहां जनता के हित और निवेशक का विश्वास दोनों सुरक्षित हैं।बिहार की सबसे बड़ी चुनौती हमेशा ऊर्जा की कमी रही है। यह प्रोजेक्ट उस कमी को दूर करने के साथ-साथ राज्य को निवेश आधारित विकास की राह पर ले जाएगा। यह सिर्फ बिजली का नहीं, बल्कि बिहार के आत्मविश्वास का प्रोजेक्ट है। दशकों से बिहार के युवा दूसरे राज्यों में जाकर फैक्ट्रियों को रोशन करते रहे हैं, अब वही रोशनी उनके अपने घरों और शहरों में लौटेगी। अदाणी का भागलपुर पावर प्रोजेक्ट बिहार को ऊर्जा, रोजगार और विकास की नई दिशा देने वाला है जहां हर गांव और हर घर में ‘रोशनी’ ही नई कहानी लिखेगी।

देशभर में एसआईआर के ईसी के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर 11 नवंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने पूरे भारत में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के निर्वाचन आयोग (ईसी) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 नवंबर को सुनवाई करने पर शुक्रवार को सहमति जताई। गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह मुद्दा लोकतंत्र की जड़ों तक जाता है जिसके बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह 11 नवंबर से इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी। पीठ ने कहा कि हालांकि 11 नवंबर से कई महत्वपूर्ण मामले सूचीबद्ध हैं, फिर भी वह एसआईआर मामलों की सुनवाई के लिए अन्य मामलों की सुनवाई को समायोजित करने का प्रयास करेगी। भूषण ने कहा कि मामले की तत्काल सुनवाई इसलिए आवश्यक है क्योंकि विभिन्न राज्यों में एसआईआर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

शीर्ष अदालत बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण करने के निर्वाचन आयोग के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई कर रही है। निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद को ‘सटीक’ बताते हुए न्यायालय से 16 अक्टूबर को कहा था कि याचिकाकर्ता राजनीतिक दल और गैर सरकारी संगठन इस प्रक्रिया को केवल बदनाम करने के लिए झूठे आरोप लगाकर संतुष्ट हैं। आयोग ने न्यायालय से यह भी कहा था कि अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद से नाम हटाने के खिलाफ किसी मतदाता ने एक भी अपील दायर नहीं की है। उसने याचिकाकर्ताओं के इस आरोप का खंडन किया था कि महीनों तक चली एसआईआर प्रक्रिया के बाद तैयार की गई राज्य की अंतिम मतदाता सूची में ”मुसलमानों को अनुपातहीन तरीके से बाहर” किया गया।

निर्वाचन आयोग ने 30 सितंबर को बिहार की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करते हुए कहा था कि इसमें मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 47 लाख घटकर 7.42 करोड़ रह गई है जो निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण से पहले 7.89 करोड़ थी। अंतिम संख्या हालांकि एक अगस्त को जारी की गई मसौदा सूची में दर्ज 7.24 करोड़ मतदाताओं से 17.87 लाख अधिक है। मृत्यु, प्रवास और मतदाताओं के दोहराव सहित विभिन्न कारणों से 65 लाख मतदाताओं के नाम मूल सूची से हटा दिए गए थे। मसौदा सूची में 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए जबकि 3.66 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए जिससे कुल मतदाताओं की संख्या में 17.87 लाख की वृद्धि हुई है। बिहार में 243 सदस्यीय विधानसभा की 121 सीट पर पहले चरण का चुनाव बृहस्पतिवार को हो गया, जबकि शेष 122 निर्वाचन क्षेत्रों में 11 नवंबर को मतदान होगा। मतों की गिनती 14 नवंबर को होगी।

चुनाव चोरी करके प्रधानमंत्री बने हैं मोदी: राहुल गांधी

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कथित वोट चोरी को लेकर शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भारतीय जनता पार्टी पर एक बार फिर निशाना साधा और दावा किया कि मोदी चुनाव चोरी करके प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस देश के युवाओं और जेनरेशन जेड को स्पष्ट रूप से दिखाएगी कि भाजपा कैसे चुनाव “चोरी” करती है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि भाजपा ने हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा ही किया है। भाजपा ने वोट चोरी के आरोप को झूठा और निराधार” बताते हुए खारिज किया है और कांग्रेस नेता पर अपनी विफलताओं को छिपाने और देश के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए निर्वाचन आयोग पर सवाल उठाने का आरोप लगाया है।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि वोट चोरी का पर्दाफाश करने का सिलसिला जारी है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया, हमारे पास बहुत सारी सामग्री है। हम इस प्रक्रिया को जारी रखेंगे। हम भारत की जनरेशन जेड यानी युवाओं को साफ़ तौर पर दिखा देंगे कि नरेन्द्र मोदी चुनाव चुराकर प्रधानमंत्री बने हैं और भाजपा चुनाव चुराती है। हम यह साफ़ तौर पर बता देंगे, इसमें कोई शक नहीं रहेगा। उन्होंने बुधवार के अपने संवाददाता सम्मेलन का ज़िक्र करते हुए कहा, मैंने यह दिखाया कि हरियाणा चुनाव कोई चुनाव नहीं था और बड़े पैमाने पर वोट चोरी हुई है।

वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण छंद 1937 में हटाए गए, विभाजनकारी मानसिकता अब भी चुनौती: प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर स्पष्ट रूप से हमला करते हुए शुक्रवार को कहा कि 1937 में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के महत्वपूर्ण छंदों को हटा दिया गया था जिसने विभाजन के बीज बोये और इस प्रकार की ”विभाजनकारी मानसिकता” देश के लिए अब भी चुनौती है। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक साल तक मनाए जाने वाले स्मरणोत्सव की शुरुआत करते हुए ये टिप्पणियां कीं। मोदी ने इस अवसर पर यहां इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। मोदी ने कहा, ”वंदे मातरम् भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बन गया। इसने हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त किया।

दुर्भाग्य से 1937 में वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण छंदों को… उसकी आत्मा के एक हिस्से को निकाल दिया गया। वंदे मातरम् के विभाजन ने विभाजन के बीज भी बोये। आज की पीढ़ी को यह जानने की जरूरत है कि राष्ट्र निर्माण के इस महामंत्र के साथ यह अन्याय क्यों हुआ… यह विभाजनकारी मानसिकता देश के लिए आज भी एक चुनौती है।” प्रधानमंत्री ने ‘वंदे मातरम्’ को हर युग में प्रासंगिक बताया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, ”जब दुश्मन ने आतंकवाद का इस्तेमाल करके हमारी सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया तो दुनिया ने देखा कि भारत दुर्गा का रूप धारण करना जानता है।” इससे पहले दिन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ”जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में अपने सांप्रदायिक एजेंडे को खुलकर आगे बढ़ाते हुए 1937 में ‘वंदे मातरम्’ के केवल संक्षिप्त संस्करण को पार्टी के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया” था।

भाजपा प्रवक्ता सी आर केसवन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ”कांग्रेस ने गीत को धर्म से जोड़ने का ऐतिहासिक पाप और भूल की। नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने वंदे मातरम् के उन छंदों को धार्मिक आधार पर जानबूझकर हटा दिया जिनमें देवी मां दुर्गा की स्तुति की गई थी।” मोदी ने समारोह में कहा कि आज जब देश ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे कर रहा है तो यह ”हमें नयी प्रेरणा देता है और देशवासियों को नयी ऊर्जा से भर देता” है। उन्होंने कहा, ”वंदे मातरम् एक शब्द है, एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। यह भारत मां के प्रति समर्पण है, भारत मां की आराधना है। यह हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है और हमारे भविष्य को नया साहस देता है। ऐसा कोई संकल्प नहीं है जिसे पूरा न किया जा सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है जिसे हम भारतीय हासिल न कर सकें। हमें एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है जो ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधार पर शीर्ष पर हो।

उन्होंने कहा कि सदियों से दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती रही है। उन्होंने कहा, ”कुछ ही सदियों पहले भारत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा था।” मोदी ने कहा, ”जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम् की रचना की थी तब भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर जा चुका था। विदेशी आक्रमणों, लूटपाट और शोषणकारी औपनिवेशिक नीतियों ने देश को गरीबी और भुखमरी से ग्रस्त कर दिया था।” उन्होंने कहा, ”इसके बावजूद बंकिम बाबू ने ऐसे समृद्ध भारत के दृष्टिकोण का आह्वान किया जो इस विश्वास से प्रेरित था कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्यों न हों, भारत अपने स्वर्णिम युग को पुनर्जीवित कर सकता है और इस प्रकार उन्होंने वंदे मातरम् का नारा दिया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों ने भारत को नीचा और पिछड़ा बताकर अपने शासन को सही ठहराने की कोशिश की।

उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ की पहली पंक्ति ने ही इस दुष्प्रचार को जबरदस्त तरीके से ध्वस्त करने का काम किया। मोदी ने कहा, ”इसलिए ‘वंदे मातरम्’ केवल आजादी का गीत नहीं है – इसने लाखों भारतीयों के सामने स्वतंत्र भारत की एक झलक- ‘सुजलाम सुफलाम भारत’ का सपना भी पेश किया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग राष्ट्र को मात्र एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में देखते हैं, उन्हें राष्ट्र को मां मानने का विचार आश्चर्यजनक लग सकता है। उन्होंने कहा, ”लेकिन भारत अलग है। भारत में, मां जन्म देने वाली, पालन-पोषण करने वाली होती है और जब उसके बच्चे खतरे में होते हैं तो वह बुराई का नाश करने वाली भी होती है।” मोदी ने ‘वंदे मातरम्’ की पंक्तियों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि मां भारती में अपार शक्ति है जो विपत्ति में हमारा मार्गदर्शन करती है और शत्रुओं का नाश करती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र को माता और माता को शक्ति की दिव्य प्रतिमूर्ति मानने की धारणा ने एक ऐसे स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया जिसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से शामिल करने का संकल्प लिया गया। उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण ने भारत को एक बार फिर एक ऐसे राष्ट्र का सपना देखने में सक्षम बनाया जहां महिला शक्ति राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे खड़ी हो। यह कार्यक्रम सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले एक साल के राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव की औपचारिक शुरुआत है। इस स्मरणोत्सव में उस कालजयी रचना के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जाएगा जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और राष्ट्रीय गौरव एवं एकता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। बंकिम चंद्र चटर्जी ने सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना की थी। ‘वंदे मातरम्’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था।

‘वंदे मातरम’ गीत कांग्रेस की बैठकों का हिस्सा, आरएसएस भाजपा ने कभी नहीं स्वीकारा: खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘वंदे मातरम्’ गीत को राष्ट्र की सामूहिक आत्मा जागृत करने वाला स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोषक गीत बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा भाजपा पर हमला किया और कहा कि राष्ट्रभक्ति का डंका पीटने वाले इस संगठन के लोगों ने अपनी शाखाओं में और बैठकों में इस गीत को कभी नहीं गया। खरगे ने वंदे मातरम गीत की 150वीं वर्षगांठ पर शुक्रवार को एक सन्देश में कहा कि इस राष्ट्रीय गीत ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया और स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष बना रहा। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत भारत माता अर्थात् भारत के लोगों की एकता और विविधता का प्रतीक है। कांग्रेस ‘वंदे मातरम्’ की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है और 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रहमतुल्ला सयानी के नेतृत्व में, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से ‘वंदे मातरम्’ का गायन किया था और तब इस गीत ने स्वतंत्रता आंदोलन में नयी ऊर्जा भर दी।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ब्रिटिश साम्राज्य की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति को समझती थी और उस समय अंग्रेजों की इस नीति के विरुद्ध ‘वंदे मातरम्’ अटूट शक्ति का गीत बनकर उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता की भक्ति में शक्ति के रूप में एक सूत्र में बांध दिया था। फिर 1905 के बंगाल विभाजन से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों के अंतिम सांसों तक ‘वंदे मातरम्’ की गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी। यह गीत लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था, भीकाजी कामा के उस तिरंगे पर अंकित था जो उन्होंने जर्मनी में फहराया। यही गीत पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में भी शामिल था। इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि वंदे मातरम उसे दौरान भारत की आज़ादी की धड़कन बन चुका था।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी इस गीत की प्रशंसा करते हुए 1915 में लिखा वंदे मातरम् बंगाल में हिंदू-मुसलमान दोनों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। यह साम्राज्यवाद विरोधी उद्घोष था। जब मैंने इसे पहली बार सुना, तो यह मुझे मंत्रमुग्ध कर गया और मैं इससे भारत के शुद्धतम राष्ट्रीय भाव को जोड़ने लगा। फिर 1938 में पंडित नेहरू ने कहा, पिछले 30 वर्षों से यह गीत सीधे भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा है। ऐसे ‘जनगीत’ न तो बनाये जाते हैं और न ही किसी पर थोपे जा सकते हैं, वे स्वयं ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं। इसी तरह 1937 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पुरुषोत्तमदास टंडन की अध्यक्षता में ‘वंदे मातरम्’ का गायन प्रारंभ हुआ। उसी वर्ष कांग्रेस ने पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी, जो भारत की एकता में विविधता का प्रतीक बना।

उन्होंने वंदे मातरम के बहाने आरएसएस पर हमला किया और कहा, दुर्भाग्य से आज जो संगठन राष्ट्रवाद के स्वयंभू ठेकेदार बने हुए हैं, आरएसएस और भाजपा उन्होंने कभी ‘वंदे मातरम्’ या हमारे राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ का गायन अपनी शाखाओं या कार्यालयों में नहीं किया। वे आज भी ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाते हैं, जो राष्ट्र की नहीं, संगठन की स्तुति है। 1925 में स्थापना के बाद से आरएसएस ने कभी ‘वंदे मातरम्’ को अपने साहत्यि या पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया। यह सर्वविदित है कि आरएसएस और संघ परिवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिशों का समर्थन किया, 52 वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया, संविधान का अपमान किया और बापू और बाबा साहेब अंबेडकर के पुतले जलाये। सरदार पटेल के शब्दों में, वे गांधीजी की हत्या की साजिश में भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ‘वंदे मातरम्’ और ‘जन गण मन’ दोनों पर गर्व करती है। हर कांग्रेस अधिवेशन, सभा और कार्यक्रम की शुरुआत और समापन इन दोनों गीतों के साथ श्रद्धा और गर्व से होता है। उनका कहना था कि 1896 से लेकर आज तक हर कांग्रेस बैठक में,अधिवेशन में या ब्लॉक स्तर की सभा में, ‘वंदे मातरम्’ गर्व और देशभक्ति के साथ गाया जाता है। खरगे ने कहा, कांग्रेस पुनः अपने अटूट विश्वास को दोहराती है और मानती है कि ‘वंदे मातरम्’ भारत माता का अमर गीत है, हमारी एकता का शंखनाद है, और भारत की अडिग आत्मा की आवाज़ है। वंदे मातरम्।