राजधानी की तीनों नगर निगम एक दशक के बाद फिर से एकीकृत हो जाएंगी। निगमों के एकीकृत करने का सबसे बड़ा कारण है निगमों की वित्तीय स्थिति का बेहद खराब होना , जो बंटवारे के बाद से लगातार चौपट होती जा रही थी। अगर दक्षिण दिल्ली नगर निगम को छोड़ दिया जाए तो उत्तरी निगम और पूर्वी निगम की वित्तीय स्थिति वर्तमान में खस्ता है। चार से पांच माह हो गए हैं उत्तरी निगम और पूर्वी निगम के हजारों कर्मचारियों को वेतन जारी नहीं हो सका है, तो वहीं सेवानिवृत कर्मचारियों को पेंशन छह माह से नहीं मिली है। निगमों के एकीकरण होने का दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों से स्वागत किया है।
वर्ष 2011 में जब तत्तकालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एकीकृत दिल्ली नगर निगम का विभाजन किया था तो यह माना जा रहा था कि वार्ड छोटे होने पर क्षेत्र में विकास कार्य बेहतर हो सकेंगे। तीन निगम होने से निगम के राजस्व में भी बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन ना तो विकास कार्य बेहतर हुए और ना ही निगमों का राजस्व बढ़ा। दक्षिण निगम की वित्तीय स्थिति पहले से ही मजबूत थी इसलिए वहां कर्मचारियों के वेतन और अन्य विकास कार्यो को लेकर कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन सच्चाई यह है कि दक्षिण निगम के मुकाबले उत्तरी और पूर्वी निगम के राजस्व में एक बहुत बड़ा अंतर इन दस सालों में देखा गया। साथ ही दक्षिण निगम की भौगोलिक स्थिति अन्य दोनों निगमों से कहीं अधिक मजबूत है। उत्तरी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम तो दिवालिया स्थिति में खड़ी है और यहां की विकास योजनाएं पूरी तरह से ठप्प पड़ी हैं।
उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम की वित्तीय स्थिति चौपट होने का एक कारण और भी है कि बंटवारे के समय दिल्ली सरकार की तरफ से ग्बोबल शेयर दिया जाना तय हुआ था। वर्तमान दिल्ली सरकार से ग्लोबल शेयर की राशि कम मात्रा में मिली जबकि उसके ग्लोबल शेयर की बड़ी राशि करीब 13 हजार करोड़ रुपये बताई गई है वह आज तक जारी नहीं की गई। इस संबंध में शहरी मामलों के विशेषज्ञ और एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगांई का कहना है कि 54 साल तक दिल्ली नगर निगम एकीकृत रही, लेकिन वर्ष 2012 में राजनीतिक स्वार्थ के चलते इसके तीन टुकड़े किए गए थे। निगमों के विभाजन के बाद से निगमों की आर्थिक स्थिति, विकास कार्य और कार्यक्षमता प्रभावित हुई है।