दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला की शिकायत पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है। महिला ने 2018 में पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में हुसैन पर बलात्कार का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति आशा मेनन ने इस बात का जिक्र किया कि प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस पूरी तरह से अनिच्छुक रही। उन्होंने कहा कि निचली अदालत के 2018 के उस आदेश में कोई त्रुटि नहीं है, जिसमें प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। साथ ही, उच्च न्यायालय ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने संबंधी अपने अंतरिम आदेशों को निष्प्रभावी कर दिया।
अदालत ने बुधवार को अपने आदेश में कहा, ”मौजूदा याचिका सुनवाई किये जाने योग्य नहीं है। याचिका खारिज की जाती है। अंतरिम आदेश निष्प्रभावी समझा जाए। तत्काल प्राथमिकी दर्ज की जाए। जांच पूरी की जाए और सीआरपीसी (दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 173 के तहत विस्तृत रिपोर्ट तीन महीने के भीतर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए। दिल्ली की एक महिला ने निचली अदालत का रुख कर बलात्कार के अपने आरोप को लेकर हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया था।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में चार अवसरों पर पीड़िता के बयान दर्ज करने का जिक्र किया गया है लेकिन इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई। अदालत ने कहा, प्राथमिकी तंत्र (मशीनरी) को सिर्फ सक्रिय बनाए रखती है। अपराध की शिकायत की जांच के लिए यह बुनियादी जरूरत है। जांच के बाद ही पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है कि क्या कोई अपराध हुआ है या नहीं और यदि ऐसा हुआ है तो यह किसने किया है। मौजूदा मामले में, यहां तक कि प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आती है।
उल्लेखनीय है कि एक मजिस्ट्रेट अदालत ने सात जुलाई 2018 को हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत के आधार पर एक संज्ञेय अपराध का मामला बनता है। भाजपा नेता ने अदालत के आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने 13 जुलाई 2018 को एक अंतरिम आदेश जारी कर निचली अदालत के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने उस वक्त हुसैन की याचिका पर नोटिस जारी किया था और महिला और पुलिस से जवाब मांगा था। हुसैन ने निचली अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप पुलिस की जांच में सही साबित नहीं हुए, फिर भी निचली अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। अभियोजन पक्ष ने कहा कि ललिता कुमारी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के आलोक में प्राथमिकी दर्ज की जानी थी और उसे दर्ज किए जाने के संबंध में दिए आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।
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