सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को मृत कर्मचारी की दूसरी पत्नी की संतान होने के ‘आधार’ पर अनुकंपा की नौकरी में नियुक्ति से इनकार करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन एवं परिवार की गरिमा के खिलाफ होगा। न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पी एस नरसम्हिा ने ऐसे ही एक मामले में पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली मुकेश कुमार की विशेष अनुमति याचिका को अनुमति दे दी।
उच्च न्यायालय ने मृतक जगदीश हरिजन की दूसरी पत्नी के बेटे होने को आधार बताते हुए रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति के मुकेश के दावे को खारिज कर दिया था। मुकेश ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है। इस मामले में सर्वोच्च अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ पीठ ने कहा, “इस तरह की नियुक्ति से इनकार करने की नीति भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 16 (2) का उल्लंघन मानी जाएगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की नीति मृत कर्मचारी के बच्चों को ‘वैध’ और ‘नाजायज’ के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकती। वर्गीकृत करके और केवल वैध वंशज के अधिकार को मान्यता देकर (केवल वंश के आधार पर) किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा योजना और अनुकंपा नियुक्ति के नियम संविधान के अनुच्छेद 14 के जनादेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं।
खंडपीठ ने ‘भारत संघ बनाम वी के त्रिपाठी’ (2019) के मामले में दिए गए अपने पिछले फैसले पर भरोसा किया। इस फैसले में यह माना गया था कि किसी कर्मचारी की दूसरी पत्नी के बच्चे को सर्फि उसी (दूसरी पत्नी की संतान) आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा एक बार जब कानून ने उन्हें (दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे) वैध मान लिया है तो उन्हें इस अनुकंपा की नीति के तहत विचार किए जाने से अलग करना असंभव होगा।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अनुकंपा नियुक्ति अनुच्छेद 16 के तहत संवैधानिक गारंटी का अपवाद है, इसलिए अनुकंपा नियुक्ति की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के जनादेश के अनुरूप होनी चाहिए। अदालत ने कहा किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। दूसरी शादी से हुए संतान के मामले में ‘वंश’ को समझा जाना चाहिए। पारिवारिक उत्पत्ति में अनुकंपा नियुक्ति के दावेदार के माता-पिता के विवाह की वैधता और दावेदार की उनके बच्चे के रूप में वैधता शामिल है।